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प्रज्ञापनासूत्रे एवम् असुरकुमारा अपि यावत् स्तनितकुमाराः, पृथिव्यप्तेजो वायुवनस्पतिकायिकाच, एते सर्वेऽपि यथा औधिका जीवाः, अवशेषा यथा नैरयिकाः, एवम् एते जीवकेन्द्रियवर्जा स्त्रयस्त्रयो भङ्गाः सर्वत्र भणितव्या इति, यावद् मिथ्यादर्शनशल्यम्, एवम् एकत्वपृथक्त्वकाः षट्त्रिंशद् दण्डका भवन्ति । ॥ स. ३॥
दीका--पूर्व प्राणातिपातादि मिथ्यादर्शनशल्यान्तानि अष्टादश १८ पापस्थानानि अधिकृत्य एकत्वपृथक्त्वाभ्यां जीवानां कर्मबन्धत्वं प्ररूपयितुमाह--'जीवे णं भंते ! सत्तविहबंधगा य अविह बंधए य) अथवा सात प्रकार के बन्धक अनेक और एक आठ प्रकृतियों का बन्धक होता हैं । (अहवा सत्तविह बंधगा य अट्टविहबंधगा य) अथवा सात प्रकार के अनेक बन्धक और आठ प्रकार से अनेक बंधक होते हैं ।
(एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा) इसी प्रकार असुरकुमार भी यावत् स्तनितकुमार (पुढवि आउ तेउ बाउ वणप्फइकाइया य ) पृथ्वीकायिक, अपकायिक तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक भी (एए सव्वे वि जहा ओहिया जीवा) ये सभी औधिक जीव के समान समझें। ( अवसेसा जहा नेरइया,) शेष जीव नारकों के समान (एवं ते जीवेगिदियवज्जा) इस प्रकार समुच्चय जीवों और एकेन्द्रियों को छोडकर (तिण्णि तिण्णि भंगा) तीन तीन भंग (सव्वत्थ भाणियव्यत्ति) सब जगह कहने चाहिए इति । (जाव मिच्छादसण सल्ले ) यावत् मिथ्यादर्शनशल्य (एवं एगत्तपोहत्तिया छत्तीसं दंडगा हो ति) इस प्रकार एकात्व और पृथकूत्व संबंधी छत्तीस दंडक होते हैं। ___टीकार्थः- इससे पूर्व प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्यतक अठारह पापस्थानों को लेकर जीवों की क्रियाओं का निरूपणा किया गया हैं।
गौतम ! या सात प्रतियोना ५५ थाय छे. ( अहवा सत्तविह बंधगा य अठविहबंधगा य) અથવા ઘણા સાત પ્રકારની પ્રકૃતિના બાક હોય છે અને એક આઠ પ્રકૃતિનો બન્ધક डाय छे (अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य) अथवाघ सात २नी प्रतियानाम: અને ઘણા આઠ પ્રકૃતિના બંધક હોય છે.
(एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा) मेरी मारे मसुरभार भने नागभारथी साधने यावत् स्तनितभा२ पर्यन्त श (पुढवि आउ तेउवाउवणप्फइकाईया य,) वी॥५४, २०५४॥यि, ते४२४॥ थि, वायुायि मने वनस्पतियि ५९५ ( एए सम्वे वि जहा ओहिया जीवा) ॥ अथा
भौषित योनसमान ( अवसेसा जहा नेरइया) शेष नाना समान ( एवं ते जीवेगिदियवज्जा ) ते मा प्रकारे समुख्यय ७ो अने मेन्द्रियो सिपाय ( तिण्णि तिण्णि भंगा) त्रण ! म ( सव्वत्थ भाणियव्वात्त ) मधे ४५ मेध्ये ( जाव मिच्छादसणसल्ले ) यावत् मिथ्याशन शल्य (एवं एगत्तपोहत्तिया छत्तीस दंडगा होति ) मे गरे ४.५ પૃથકવ સંબન્ધી છત્રીસ દંડક થાય છે.
ટીકાર્ય–આનાથી પહેલાં પ્રાણાતિપાતથી લઈને મિથ્યાદર્શન શલ્ય સુધી અઢાર પાપ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫