SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१२ प्रज्ञापनासूत्रे असंज्ञिनः खलु भदन्त ! जीवाः पञ्चन्द्रियनिरयगतिनाम्नः कर्मणः किं बध्नन्ति ? गौतम ! जघन्येन सागरोपमसहस्रस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्यासंख्येयभागोनौ, उत्कृष्टेन तो चैव परिपूर्णी, एवं तिर्यग्गतिकस्यापि, मनुष्यगतिनाम्नोऽपि, एवञ्चव, नवरं जघन्येन सागरोपमसहस्रस्य द्वयर्द्धः सप्तभागः पल्योपमस्यासंख्येयभागोन:, उत्कृष्टेन स एव परिपूर्णों षध्नन्ति, एवं देवगतिनाम्नः, नवरं ते सागरोपमसहस्रस्य एकः सप्तभागः पल्योपमस्याजहा नेरइया उयस्स) देवायु का नारकायु के समान । (असणी णं भंते ! जीवा) हे भगवन् ! असंज्ञी जीव (चिदिय निरयगति नामाए कम्मरस किं बंधति) पंचेन्द्रिय नरकगति नामकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? (गोयमा ! जहणणं सागरोवमसहस्तस्स दो सत्तभागे) हे गौतम ! जघन्य सहस्र सागरोपम के भाग (पलि भोवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया) पल्योपम का असंख्यातयां भाग कम (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णे) उत्कृष्ट वही परिपूर्ण (एवं तिरियगतिए वि) इसी प्रकार तिर्यचति का भी (मणुयगतिनामाए वि एवं चेय) मनुष्यगति नामकर्म का भी इसी प्रकार (णवर) विशेष (जहण्णेणं सागरोयमसहस्सस्स दिवई सत्तभागं) जघन्य सहस्र सागरोपम का भाग (पलिओवमस्सासंखेज्जइभागेणं ऊणयं) पल्योपम का असं. ख्यातवां भाग कम (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं) उत्कृष्ट वही सागरोपम का भाग परिपूर्ण (बंधति) बांधते हैं (एवं देवगतिनामाए) इसी प्रकार देवगति नामकर्म का (ण वर) विशेष (ते सागरोयमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवम स्सासंखेज्जइभागेणं ऊणयं) वह सहस्त्र सागरोपम के भाग पल्योपम के (असणीणं भंते जीवा पंचिं दियनिरयगतिनामाए कम्भस्स कि बंधंति ?)-३ मापन् અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય નરકગતિ નામકર્મને બંધ કેટલા કાળને કરે છે? (गोयमा! जपणेणं सागरोक्मसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जई भागेणं अणया) - गौतम, धन्यथा पक्ष्यापभनी मसध्यातमे मा माछा मेवा ॥२ सासरोपमना सामना छ (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्ण) सन १७४थी ते पूरा मामधे छे. (एवं तिरिए गतिए ति)-से प्रमाणे तिय य गतिना ५९ (मणुयगति नामाए वि एवं चेय)-मनुष्य गति नामभनी म ५४ मे प्रमाण (णवर) विशेष, (जहण्णेण सागरोवमसहस्सस्स दिवढे सत्तभागं, पलिओवमस्सासंखेजई भागणं ऊणयं)-पक्ष्या५भने। અસંખ્યાત ભાગ એાછા એવી હજાર સાગરોપમને ! | દેઢ સપ્તમાંશ ભાગને બંધ 30. (उक्कोसेणं त चेव पडिपुण्ण बंधति)-32 यी ते सा५मना । ला पुरेपु। मांधे छ (एवं देवगतिनामाए) में मारे गति नाममनो ५५ मधे छ. (णवर) विशेषमा, (ते सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं, पलिओवमस्सासंखेज्जई भागेणं ऊणय)-ते હજાર સાગરોપમને ૩ ભાગ, તેમાંથી પાપમને અસંખ્યાતમે ભાગ એ છ બાદ કર. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy