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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० १२ एकेन्द्रियकमै प्रकृतिस्थिति परिमाणनिरूपणम् ४११ भाग इति, मिथ्यात्व वेदनीयस्य जघन्येन सागरोपमसहस्रं पल्योपमासंख्येयभागोनम्, उत्कृस्टेन तदेव परिपूर्णम्, नैरधिकायुष्यस्य जघन्येन दशवर्षशतानि अन्तर्मुहूर्त्ताभ्यधिकानि, उत्कृष्टेन पल्योपमस्यासंख्येयभागः पूर्वकोटित्रिभागाभ्यधिको बध्नन्ति, एवं तिर्यग्योनिकायुष्यस्यापि नवरं जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, मनुष्यायुष्यस्यापि देवायुष्यस्य यथा नैरयिकायुष्यरूप, भाग ( एवं सो चेव गमो जहा बेइंदियाणं) इस प्रकार वही गम समझना जैसा द्वीन्द्रियों का (णवरं) विशेष (सागरोवमसहस्सेणं समं भाणियव्वं ) सहस्र सागरोपम के साथ कहना चाहिए (जस्स जइ भागति) जिसके जितने भाग है (मिच्छत्तदणिज्जस्स जहणेणं सागरोवमसहस्सं पलिओवमासंखेज्जइभागेणं ऊणयं) मिथ्यात्ववेदनीय का जघन्य पत्योपम का असंख्यातवां भाग कम सहस्रसागरोपम (उक्कोसेणं तं चेत्र पडिपुण्णं) उत्कृष्ट वही पूर्ण सहस्र सागरो पम (नेरइयाउयस्स जहणणेणं दसवाससहस्साई ) नरकायु का जघन्य दश हजार वर्ष (अंतो मुहुत्तमन्महियाई) अन्तर्मुहूर्त अधिक (उक्कोसेणं पलिओयमस्स असंखेज्जइभागं पुव्यकोडितिभागमम्भहियं बंधंति) उत्कृष्ट करोड पूर्व का त्रिभाग अधिक पल्योपम का असंख्यातवां भाग बांधते हैं (एवं तिरिक्ख जोणियाउस्स) इसी प्रकार तिर्यचायु का ( चि) भी (णवरं) विशेष (जहणेणं अंतो मुहतं) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त (मणुवाउयस्स वि) मनुष्यायु का भी ( देवाउयस्स ૐ ભાગના સમયનું ખાંધે છે. ( एवं सो चेव गमो जहा बेइंदियाणं) - ये प्रभागे ते गम - साय-समय तात्पर्य थे इन्द्रियोनी पेठे समभ्यो लेह. (नवरं ) - विशेष, (सागरोवमसहस्सेण समं भाणियच्व') हन्तर सागरे पभनी साथै समक सेवा लेई मे (जस्स जई भागत्ति) - भेना भेटलो लाग પ્રમાણે કહેવુ જોઇએ. (मिच्छत्तवेय णिज्जरस जहणणं सागरोवमसहस्सस्स पलिओवमासंखेज्ज ईभागेणं कणयं ) - મિથ્યાત્વ વેદનીય કર્મના બંધ, જઘન્યથી પછ્યાપમના અસ`ખ્યાતમે ભાગ એછે. એવા हमर सागरोपमा (उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं) - उत्कृष्टथी ते यूरेयूरो इन्नर सागरीयमना ખધ કહેવા જોઇએ. (नेरई बाउयरस जहणेणं दसवास सहस्साई अंतो मुहुत्तमम्भहियाई) - नरायुना बंध भधन्य इस हेजर वर्ष उपरांत अंतर्मुहूर्त व्यधितो रे छे (उकोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जई भाग पुन कोडि ति भागमन्महियाई बंधति) - उत्ष्टथी रोड पूर्वना ऋण लाग અધિક એવા પક્ષેાપમના અસ`ખ્યાતમા ભાગના અધ બાંધે છે. ( एवं तिरिक्खजोणिया यस्स वि) - अमाणे तिर्ययायुनु पशु समन्वु (णवर) विशेष, (जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं ) - ४धन्य तर्मुहूर्त, ( मणुयाउयस्स वि) - भुनुष्यायुनु प (देवाउयस्स जहा नेरइया उयस्स) - हेपायुनु नारअयुंनी समान समन्धु तेप्रमाणे सम શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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