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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० ९ कर्मस्थितिनिरूपणम् जयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि पूर्वकोटि त्रिभागाभ्यधिकानि, तिर्यग्योनिकायुष्यस्य पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमाणि पूर्वकोटित्रिभागाभ्यधिकानि, एवं मनुष्यायुष्यस्यापि देवायुष्यस्य यथा नैरयिकायुष्यस्थ स्थितिरिति, निरयगतिनामनि खलु पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमसहस्रस्य द्वौ सप्तभागौ पल्योपमस्य असंख्येयभागोनौ, उत्कृष्टेन विंशतिःसागरोपमकोटीकोटयः, विंशतिः वर्षशतानि, अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, तिर्यग्गतिनाम्नि यथानपुंपकवेदस्य, मनुष्यातिनाम्नि पृच्छा, जघन्येन सागरोपमस्य दिवाः सप्तभागः पल्योपमस्य असंख्येयभागोनः, उत्कृष्टेन पञ्चदशसागरोपमकोटीकोटयः प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त (उक्कोसेणं तिन्नि पलि ओवमाई पुचकोडी तिभागमभहियाई) उत्कृष्ट पूर्व कोटि के त्रिभाग अधिक तीन एल्पोपम की 'एवं मणुस्साउएवि) इसी प्रकार मनुष्यायु भी (देवाउयस्त जहा नेरइयाउयस्स) देवायु की स्थिति नरकायु के समान (निरयगइनामए णं पुच्छा ?) नरकगतिनामकर्म की स्थिति संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोयमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असं खेज्जइभागेणं ऊणया) हे गौतम ! जघन्य पल्यापम का असंख्यातवां भाग कम एक सागरोपम के : भाग (उकोसेणं यीसं सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की (बीसं वाससयाई अवाहा) वीस सौ वर्ष का अबाधा काल (तिरियगइनामए जहा नपुंसगवेयरस) तिर्यंचगतिनामकर्म की स्थिति नपुंसक वेद के समान (मणुषगइनामए पुच्छा) मनुष्यगतिनामकर्म संबंधी प्रश्न ? (जहण्णेणं सागरोवमस्त दिवद्धं सत्तभागं, पलिअओवमस्स असंखेजइ भागेणं ऊणगं) जघन्य पल्पोपम का असंख्यातयाँ भा कम सागरोपम का। जहण्णेणं अंतोमुहुत्त) गौतम ! धन्य मन्तभुत (उक्कोसेणं तिन्निपलिओचमाई पुव्वकोडी तिभागमभहियाई) ट पूर्व टिना विना धि५.यो५मनी (एवं मणुस्साउए वि) मे ५४२ मनुध्यायु २५ धा ५९५ (देवाउयस्स जहा नेरइपाउयस्स) वायुनी સ્થિતિનરકાયુના સમાન. (निरयगई नामए णं पुच्छो ?) २४ मतिनामभनी स्थिति समधी प्रश्न ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दोसत्तभागा पलि प्रोवमस्सअसंखेन्जइभागेणं ऊणया) हे गौतम ! धन्य ५न्या५मना असभ्यातभा मा न्यून से सागसपना माग (उकोसेणं वीससागरोवमकोडाकोडीओ) कृष्ट पीस 13131 सायमनी (वीसं वाससयाई अबाहा) पीस सो पपनी Altra (तिरियगइनामए जहा नपुंसगवेयस्स) तिय यति नाममनी સ્થિતિ નપુંસકવેદના સમાન. (मणुयगई नामए पुच्छा १) मनुध्य गति नाम समधी प्रश्न ? (जहण्णेणं सागरोवमरस दिवढं सत्तभागं, पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणगं) "न्य ५८यो ५भने। सध्यातमा मा न्यन साग। ५भने। माn (उक्कोसणं पण्णरससागरोवमकोडाकोडीओ) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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