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________________ २८६ प्रज्ञापनासूत्रे पल्योपमस्या संख्येयभागोनः, उत्कृष्टेन दशसागरोपमकोटीकोटयः, दशवर्षशतानि अबाधा, अबाधना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, अरतिभयशोकजुगुप्सानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सागरोपमस्थ द्वौ सप्तमागौ पल्योपमस्य असंख्येयभागोनों, उत्कृष्टेन विशतिः सागरोपम कोटः, विशतिः षशतानि अबाबा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, नैरयिका युष्यस्य खलु पृच्छा, गौतम ! जवन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि, उत्कृष्टेन भाग (पलिओचमस्स असंखेजइभागेणं ऊणं) पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम (उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट से दस कोडाकोडी सागरोपम (दस वाससाई अवाहा) दस सौ वर्ष का अबाधा काल । ( अरइ-भय- सोग - दुर्गुछाणं पुच्छा ? अरति, भय, शोक, जुगुप्सा की स्थिति संबंधी पृच्छा ? (गोमा ! जहणेणं सागरोवमस्स दोणि सत्तभागापलि भोवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊगवा) हे गौतम! जघन्य पल्योपम का असं ख्यातवां भाग कम सागरोपम के भाग की (उक्कोसेण वीसं सागरोयम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट वोस कोडाकोडी सागरोपम की (बीसं वाससयाई अवाहा) वीस सौ वर्ष का अवाधा काल । (नेरइयाउयस्स णं पुच्छा) नैरधिकायु संबंधी प्रश्न (गोधमा ! जपणेणं दस सहसाई) हे गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की (अंतोमुत्तममहियाई) अन्तर्मुहूर्त्त तक (उक्को सेणं तेती से सागरोवमाई पुत्र्व कोडीति भागमन्महियाई) उत्कृष्ट करोड पूर्व के तीसरे भाग अधिक तेतीस सागरोपम की । (तिरिक्खजोणिया उपस्त णं पुच्छा ?) तिर्यचायु की स्थिति के विषय में सागरोवमस्स एकं सत्तभाग) हे गौतम! धन्य सागरोपमा लाग (पलिओमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणं पयोपतो असंख्यातमे लाग न्यून (उक्को से गं दससागरोत्र मकोडाकोडीओ) उत्कृष्ट दृश अडाडी सागरोपम (दसवीससवाई अबाहा) मेड साम वर्षानी अभाधाव (अरइ-भय- सोग - दुगु छाणं पुच्छा १) मरति, लय, शोक, लुगुप्सानी स्थिति सम्भन्धी २छ ? (गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्म दोणिसत्तभागा-पलि ओवमरस असंखेज्जइ भागेणं ऊणया) हे गौतम! धन्य पत्योपमना असं ज्यात भो लाज न्यून सागरोपमनी लागनी (उक्कोसे वोसं सागरोत्रम कोडाकोडीओ) ड्डूष्ट पीस डिओडी आगरोपभनी (वीसंवास सयाई अबाहा) पीस से वर्षानी अाधाल. (नेरइयायरस पुच्छा ?) नैरायु संबंधी प्रश्न ? (गोयमा ! जगेणं दसवास सहरसाई) हे गौतम! धन्य दृश उन्नर वर्षानी (अंतो मुहुत्तममहियाई) अन्तर्मुहूर्त सुधी (उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोत्रमाई पुत्रकोडी तिभागमन्महियाई) उत्कृष्ट । पूर्वनी तेत्रीस लाग અધિક તેવીસ સાગરે ધમની, (तिरिक्ख जोणिया उयस्स णं पुच्छा ?) तिर्ययायुनी स्थितिनां विषयमा प्रश्न ? (गोयमा ! શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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