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प्रमेयवोधिनी टीका पद २२ सू २ क्रियास्वरूपनिरूपणम् पातेन क्रिया क्रियते? हन्त गौतम ! अस्ति कस्मिन् खलु भदन्त जीवानां प्राणातिपातेन क्रिया क्रियते ? गौतम पसु जीवनिकायेषु अस्ति खलु भदन्त ! नैरायिकाणां प्राणातिपातेन क्रिया क्रियते ? गौतम! एवञ्चैव, एवं यावन्मिरन्तरं वैमानिकानाम्, अस्ति खलु भदन्त ! जीवानां मृपावादेन क्रिया क्रियते ? हन्त अस्ति, कस्मिन, खलु भदन्त ! जीवानां मृपावादेन क्रिया क्रियते? गौतम! सर्वद्रव्येषु. एवं निरन्तर नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम् , अस्ति खलु भदन्त ! जीवानाम् अदत्तादानेन क्रिया क्रियते ? ___ (से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जीवा सकिरिय वि, अकिरिया वि) इस हेतु हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कितनेक जीव क्रिया युक्त भी हैं और कितनेक क्रिया रहित भी है।
(अस्थि णं भंते जोवाणं पाणाइवायकिरिया कज्जइ?) क्या भगवन् जीवों को प्राणातिपातसे क्रिया की जाती है-होती है? (हंता गोयमा ! अत्थि) हां गौतम होती हैं (कम्हिणं भंते जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ?) किसमें हे भगवन् जीवों को प्राणातिपात द्वारा क्रिया की जाती है ? (गोयमा छसु निकाएसु) हे गौतम! छहों निकायों में (अत्थि णं भंते! नेरइयाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ?) क्या हे भगवन् ! प्राणातिपात से नारकों को क्रिया होती है? (गोयमा! एवं चेव) हे गौतम! इसी प्रकार अर्थात् होती है (एवं जाव निरंतरं वेमाणियाणं) इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों तक (अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जइ?) हे भगवन् जीवों को मृषावाद से क्रिया होती है? (हंता अस्थि) हां होती है (कम्हि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरया कज्जइ) हे भगवन् जीवोंसे किसमें मृपावाद से क्रिया होती है? (गोयमा! सव्वदन्वेसु) हे गौतम! सब द्रव्यों में (एवं निरंतर नेरइयाणं जाव येमाणियाणं) इसी प्रकार निरन्तर नारकों यावत् वैमानिकों को
(अस्थि णं भंते! जीवाणं अदिन्नादाणेणं किरिया कज्जइ?) हे भगवन् अदत्तादान કહેવાય છે કે જીવ કિયા યુક્ત પણ છે અને ક્રિયારહિત પણ છે.
(अस्थि ण भाते ! जिवाण पाणाइवाएणकिरिया कज्जइ ?) शुभगवन्! याने आयातिपातथा लिया ४२॥य -थाय छे ? (हता गोयमा ! अत्थि) है। गैतम थाय छे. (कम्हिण भते जीवाण पाणा इवाएण किरिया कज्जइ १) शेम भगवन् पाने प्रातिपात द्वारा लिया ४२१५ छ ? (गोयमा । छसु निकाएसु) गौतम छोनियामा (अस्थि ण भते! नेरइयाण पाणाइवाएण किरिया कज्जइ ?) शुभगवन् ! प्रामातिपातथा नारानी या थाय छ ? (एवं निरंतर जाव वेमाणियाण) मे પ્રકારે નિરન્તર વૈમાનિકે સુધી.
(अस्थि ण भते ! जीवाण मुसावाएण किरिया कज्जइ ?) भगवन् ! वोने भृषापाथी जिया थाय छ? (हता अस्थि) है। थाय छ ? (कम्हि णं भते! जीवाण मुसावाएण किरिया कज्जइ) हे भगवन् ! ४ मा भृषापीहथी जिया याय छे ? (गोयमा ! सव्वदन्वेसु) गौतम ! Mi श्याम. (एवं निरंतर नेरइयाणं जीव वेमाणियाण) (मे४ प्रा निरन्तर ना२३॥ यावत् वैमानानी
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫