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प्रज्ञापनासूत्रे टीका :- पूर्वोदेशके ज्ञानावरणीयादीनामनुभावः प्ररूपितः, सम्प्रति द्वितीयो. देशके तेषा मेव ज्ञानाबरणीयाना मुत्तरप्रकृति विभागं प्ररूपयितुं प्रथमं विशेषपरिज्ञानार्थ पुनर्मूलप्रकृति मधिकृत्याह-'कइणं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त! कति खलु भदन्त! कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम! 'अट्ट कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ' अष्टौ कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः, ना एवाह-'तं जहा-णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं तद्यथा-ज्ञानावरणीय कर्मप्रकृति र्यावद्-दर्शनावरणीयम्, वेदनीयम्, मोहनीयम्, नाम, गोत्रम्, आयुः, अन्तरायकर्मप्रकृतिः, अथ उत्तरप्रकृति मधिकृत्य गौतमः पृच्छति‘णाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते?' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं खलु कर्म
(अंतराएण भंते ! कम्मे कइविहे पण ?) हे भगवन् ! अन्तराय कर्म कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा! पंचविहे पण्ण) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (त जहा-दाणतराइए जाव वीरियंतराइए) वह इस प्रकार-दानान्तराय यावत् वीर्यान्तराय कहा है ___टीकार्थ :- प्रथम उद्देशक में ज्ञानावरणीय आदि कर्म प्रकृतियों के अनुभाव का निरूपण किया गया था।
इस दूसरे उद्देशक में ज्ञानावरणीय आदि की उत्तर प्रकृतियों के भेदों का निरू. पण करने के लिए सर्व प्रथम, विशेष झान के लिए मूल प्रकृतियों के विषय में प्रश्न किया जाता है
श्री गौतमस्वामी हे भगवन् ! कर्मप्रकृतियां कितने प्रकार की कही है।
श्री भगवान्-हे गौतम ! कर्मप्रकृतियां आठ प्रकारकी कही गई हैं, वे इस प्रकार हैंज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ।
अब उत्तरप्रकृतियों के विषय में प्रश्न किया जाता है-हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय (णवर) विशेष (जातिविहीणया जाव इस्सरियविहीणया) जति विहीनता यावत् मैं वय विहीनता
(अंतराए णं भाते ! कम्मे कईबिहे पण्णत्ते ?) 3 भगवन् ! अन्तराय में 21 प्रारना ४७यां छ? (गायमा ! पंचविहे पण्ण) हे गौतम! पांय ४२४७यां छे (तौं जहा-दाणंतराइए जाव वीरियंतराइए) ते 21 1रे हाना-तराय यावत् वीर्यान्तराय ४९यां छ
ટીકાર્થ –પ્રથમ ઉદ્દેશકમાં જ્ઞાનાવરણીય આદિ કર્મપ્રકૃતિના અનુભાવનું નિરૂપણ કરાયું હતું. આ બીજા ઉદ્દે શકમાં જ્ઞાનાવરણીય આદિની ઉત્તર પ્રકૃતિના ભેદોનું નિરૂપણ કરવા માટે સર્વ પ્રથમ વિશેષ જ્ઞાનના માટે મૂલ પ્રકૃતિયોના વિષયમાં પ્રશ્ન કરાય છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન ! કર્મ પ્રકૃતિ કેટલા પ્રકારની છે?
શ્રી ભગવાન- હે ગૌતમ ! કર્મ પ્રકૃતિ આઠ પ્રકારની કહી છે, તે આ પ્રકારે છે. ज्ञानाव२९, ६शन।४२९५, पेहनीय, भाडनीय, आयु, नाम, गोत्र भने सन्तराय.
હવે ઉત્તર પ્રકૃતિના વિષયમાં પ્રશ્ન કરાય છે-હે ભગવન! જ્ઞાનાવરણીય કર્મ કેટલા પ્રકારના કઈ છે?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫