SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. ५ कर्मप्रकृतिबन्धद्वारनिरूपणम् ज्ञातु कामो न जानाति ज्ञात्वाऽपि न जानानि उच्छन्नज्ञानी चापि भवति, ज्ञानावरणीयस्य कर्मण उदयेन, एतत् खलु गौतम! ज्ञानावरणीयं कर्म, एष खलु गौतम ! ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पुद्गलपरिणामं प्राप्य दशविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, दर्शनावरणीयस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पुद्गल परिणाम प्राप्य कतिविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! दर्शनावरणीयस्य कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पुद्गलपरिणाम प्राप्य नवविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-निद्रा १ निद्रा निद्रा २ (तेसिं वा उदएणं) उनके उदय से (जाणियव्यं ण जाणई) जानने योग्य को नहीं जानता है (जाणिउकामे ण जाणइ) जानने का इच्छुक होकर भी नहीं जानता (जाणित्ता वि ण जाणइ) जानकर भी नहीं जानता (उच्छत्र गाणी यावि भवइ) तिरोहित ज्ञान वाला होता है (णाणावर णिज्नस्स कम्मस्स उदएणं) ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से (एस णं गोयमा ! णाणावरणिज्जे कम्मे) हे गौतम ! यह ज्ञानावरणीय कर्म हैं। (एस णं गोयमा! णाणावरणिज्जस्स कम्मम्स) हे गौतम ! यह ज्ञानावरणीय कर्म का (जीवेणं बद्धस्स) जीव के द्वारा बांधे हुए का (जाव पोग्गलपरिणामं पप्प) यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके (दसविहे अणुभावे पण्णचे) दस प्रकार का अनुभाव कहा है। (दरिसणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स) हे भगवन्! दर्शनावरणीय कर्म का (जीवेणं बद्धस्स) जीव द्वारा बांधे हुए का (जाव पोग्गलपरिमाणं पप्प) यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके (कइ विहे अणुभावे पण्ण) कितने प्रकार का अनुभाव कहा है ? (गोयमा! दरिस्सणावरणिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स) हे गौतम ! जीव के द्वारा बद्ध दर्शनावरणीय कर्म का (जाव पोग्गलपरिणामं पप्प) यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके (णावविहे अनुभावे पण्णत्ते) नौ प्रकार का अनुभाव कहा है। Yसाना परि भने (तेसि वा उदएण) तमना मध्यथी (जाणियव्वं ण जाणइ) M]पा योग्यने नया गाता (जाणिउकामे ण जाणइ) गवाना २४ सनीन पर नथी लता (जाणिचा वि ण जाणइ) तीने ५५ नथी । (अञ्छन्नणाणी या वि भवइ) ति। हित ज्ञानवाणा मने छ (णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं) ज्ञाना१२५ीय भन। यथा (एसणं गायमा ! णाणावरणिज्जे कम्मे) હે ગૌતમ ! આ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ છે (एसणं गायमा ! णााणवरणिज्जस्स कम्मस्स) हे गौतम ! मा ज्ञानावरणीय प्रभा (जीवणं बद्धस्स) ना द्वारा माघेसाना (जाव पोग्गलपरिणाम पप्प) यावत हगला परिणाम प्राप्त ४शने (दसविहे अणुभावे पण्णते) सारन। मनुमा ४था छ (दरिसणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स) हे भगवन् शनावरणीय मन। (जीवेणं बद्धस्स) या मांधताना (जाव पोग्गलपरिमाण पप्प) यावत् हल परिक्षामने प्रात शने (कई विहे अणुभाने इण्णत्ते) डेटा प्रा२ना अनुला५ या छ ? (गे।यमा ! दरिसणावरिणीज्जस्स कम्मस्स जीनेणं बद्धस्स) गौतम ! ७५द्वा श ना ५२०ीय भना (जाव पोग्गलपरिणाम पप्प) यावत् १६० परिणामने प्राप्त शने (णवविहे શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy