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________________ १७८ प्रज्ञापनासूत्रे भवं प्राप्य पुद्गलं प्राप्य पुग्दलपरिणाम प्राप्य कतिविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! ज्ञानावरणीयस्य खलु कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पुद्गलपरिणाम प्राप्य दशविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-श्रोत्रावरणं १, श्रोत्रविज्ञानावरणं २, नेत्रावरणं ३. नेत्रविज्ञानावरणम् ४, धाणावरणं ५, धाणविज्ञानावरणं ६, रसावरणं ७, रसविज्ञानावरणं ८, स्पर्शावरणम् ९, स्पर्शविज्ञानावरणम् १० य वेदयते पुद्गलं वा पुद्गलान वा पुद्गलपरिणाम वा विस्रसया वा पुद्गलानां परिणाम तेषां वा उदयेन ज्ञातव्यं न जानाति प्राप्त (तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स) अथवा दोनों द्वारा उदीरित (गतिं पप्प) गति को प्राप्त करके (ठिति पप्प) स्थितिको प्राप्त करके (भवं पप्प) भवको प्राप्त करके (पोग्गलं पप्प) पुद्गल को प्राप्त करके (पोग्गलपरिणामं पप्प) पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके (कइविहे) कितने प्रकार का (अणुभावे) फल (पण्णत्ते) कहा है ? (गोयमा!) हे गौतम! (णाणा वरणिज्जस्सण कम्मस्स)ज्ञानावरणीय कर्मका (जी वेणं बद्धस्स) जीव के द्वारा बांधे हुए का (जाव) यावत् (पोग्गलपरिणामं पप्प) पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके (दसविहे अणुभावे पण्णत्ते) दस प्रकार का अनुभाव कहा है। (तं जहा) वह इस प्रकार है (सोयावरणे) श्रोत्रावरण (सोविण्णाणावरणे) श्रोत्र विज्ञानावरण (नेत्तावरणे) नेत्र का आवरण (नेत्तविण्णाणावरणे) नेत्र विज्ञानावरण (घाणावरणे) घ्राणावरण (घाणविण्णाणावरणे) घ्राण विज्ञानावरण (रसावरणे) रसेन्द्रिय का आवरण (रसविण्णाणावरणे) रस विज्ञानावरण (फासावरणे) स्पर्श इन्द्रिय का आवरण (फास विण्णाणावरणे) स्पर्श विज्ञानावरण (ज) जो (वेएइ) वेदता है (पोग्गलं वा) पुद्गल को (पोग्गले वा) या पुद्गलों को (पोग्गल परिणामं वा) या पुद्गल परिणाम को (वीससा वा) अथवा स्वभाव से (पोग्गलाणं परिणाम) पुदगलों के परिणाम को अध्यने प्राप्त (परेण वा उदिरियस्स) अथवा मीलना ६॥२॥ मही२९॥ प्राप्त (तदुभएण वा उदिरिजमाणस्स) अथवा मन्ने द्वारा अहीरीत (गति पप्प गतिने प्राप्त ४२रीने (पेग्गिल पप्प) पुगतने प्राप्त शन (पोग्गलपरिणाम पप्प) पुल परिणाम प्राप्त शन (कइविहे) 321 रना (अणुभावे) ३ (पण्णत्ते) हे छ ? (गोयमा) ! गौतम ! (णाणावरणिज्जस्स ण कम्मस्स) ज्ञाना १२९jीय मना (जीवेणबद्धस्स) सन द्वारा माघेलान (जाव) यावत् (पोग्गलपरिणाम पप्प ) पुगत परिणाम प्राप्त शन (दसविहे अणुभावे पाणते) ६॥ प्रा२ना मनुला या . (तं जहा) ते २ छ (सायावरणे) श्रेत्रा१२९५ (साय विण्णाणावरणे ) श्रोत्र विज्ञाना १२६ (नेत्तावरणे) नेत्रनुमाव२ (नेविण्णाणावरणे) नेत्र विज्ञानावरण (घाणावरणे) छाया पा (घाणविण्णाणावरणे) धा। विज्ञानावर (रसावरणे) २सन्द्रियनु माय२९ ( रसविण्णाणा वरणे) २स पिज्ञानापर। (फासावरणे) २५श द्रयनुभावः। (फासविण्णाणावरणे) २५० विज्ञाना५२६(ज) मे (वेएइ) वेहेछे (पोग्गलवा) पुरन (पागलेवा) मा पुगतान (पागलपरिणामं वा) अया पुस परिणामने (वीससा वा) अथवा स्वमाथी (पेग्गिलाणं परिणाम) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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