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प्रज्ञापनास्त्रे कर्मवन्धप्रकारवक्तव्यता मूलम्-"कइ णं भंते! जीवे अट्टकम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! णाणावरणिजस्स कम्मस्स उदएणं दरिसणावरणिज कम्मं णियच्छइ, दंसणावरणिजस कम्मस्स उदएणं दंसणमोहणिज कम्भणियच्छइ, दसणमोहणिजस्स कम्मस्स उदएणं मिन्छत्तं नियच्छइ, मिच्छत्तणं उदिएणं गोयमा ! एवं खलु जीवो अट्टकम्मपगडीओ बंधइ ? गोयमा ! एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए, कहणं भंते ! जीवा अट्टकम्मपगडीआ बंध ति गायमा! एवंचेव, जाव वेमाणिया” ॥ सू. २॥ ___ छाया--कथं खलु भदन्त ! जीवोऽष्टकर्मप्रकृतीबंध्नाति ? गौतम! ज्ञानावरणीयस्व कर्मण उदयेन दर्शनावरणीय कर्म निर्गच्छति, दर्शनावरणीयस्य कर्मण उदयेन दर्श नमोहनीयं कर्म निर्गच्छति, दर्शनमोहनीयस्य कर्मण उदयेन मिथ्यात्व निर्गच्छति, मिथ्यात्वेन उदितेन गौतम ! एवं खलु जीयः अष्टौ कर्मप्रकृतीबध्नाति, कथं खलु भदन्त ! नैरयिकः अष्टौ कर्मप्रकृतीबंध्नाति ? गौतम ! एवञ्चैव, एवं यावद्
कर्म बन्ध प्रकार शब्दार्थ :- (कहं णं भंते ! जीवे अट्टकम्मपगडीओ बंधइ?) हे भगवन् ! जीव आठ कर्म प्रकृतियों को किस प्रकार बांधता है ? (गोयमा! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं) हे गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से (दरिसणावरणिज्ज कम्म नियच्छइ) दर्शनावरणीय कर्म को प्राप्त करता है (दसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं) दर्शनावरणीय कर्म के उदय से (दसणमोहणिज्ज कम्मणियच्छइ) दर्शनमोहनीय कर्म को प्राप्त करता है (दंसणमोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं) दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से (मिच्छत् नियच्छइ) मिथ्यात्वको प्राप्त करता है, (मिच्छत्ते णं उदएणं) मिथ्यात्व के उदित होने से (गोयमा) हे गौतम! (एव) इस प्रकार (खलु) निश्चय (जीवो) जीव (अट्ठकम्मपगडीओ बंधइ) आठ कर्म प्रकृतियों को बांधता है।
કર્મ બન્ધ પ્રકાર शहा:- (कहण भंते ! जीवे अढ कम्मपगडीओ बंधइ ?) भगवन् ! ७५ मा म प्रतियाने या प्रजरे मधे छ ? (गोयमा ! णाणावरणीजस्स कम्मस्स उदएण) हे गौतम ! ज्ञाना. परणीय भना यथा (दरिसणावरणिज कम्म नियच्छइ) शनापरणीय भने प्राप्त रेछ (दसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं) ६शना२४ीय भना यथा (दसणमोहणिज्ज कम्मं णियच्छइ) शन माहनीय भने प्रात ४२ छ (दसणमोहणिजस्स कम्मस्स उदएण) निभाइनीय भना
यथा (मिच्छत्त नियच्छइ भियाप प्राप्त ४२ छ. (मिच्छतेण उदएण) मिथ्यात्यने ५ थपाथा (गोयमा) गीतम! (एव) से प्रारे (खलु) निश्चय (जीवो) ७१ (अट्टकम्मपगडीओ बधइ)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫