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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. १ कर्मबन्धाधिकारनिरूपणम्
छाया-कतिप्रकृतयः १ कथं बनाति २ कतिभिः स्थानो बन्धको जीयः कति वेदयते च प्रकृती: ४ अनुभावः कतिविधः कस्य ५॥१॥
टीका--पूर्वस्मिन् द्वाविंशतितमे क्रियापदे नारकादि गतिपरिणामेन परिणतजीवानां प्राणातिपातादि क्रियाविशेषः प्ररूपितः, सम्प्रति त्रयोविंशतितमे कर्मप्रकृतिपदे कर्मबन्धादि परिणामविशेष प्ररूपयितुमधिकार द्वारगाथामाह-'कइपगडी १ कहबंधइ २ कइहिवि ठाणेहिं बंधए जीवो ३, इत्यादि पूर्वोक्तानुसारमवसेयम् ॥१॥
कति कर्मप्रकृतयो भवन्ती त्यादिरीत्या प्रथम द्वारम् १ एवं कथं केन प्रकारेण ताः प्रकृती वो बध्नातीति द्वितीयं द्वारम् २ तदनन्तर कतिभिः स्थानै कर्मप्रकृति
तेईसवां कर्मप्रकृति पद् प्रारंभ
अधिकार द्वार गाथा शब्दार्थ :- (कइपगडी) प्रकृतियां कितनी है ? (कहबंधइ) किस प्रकार बंधती हैं ? (कहहि वि ठाणेहि बंधए जीवो?) जीप कितने स्थानों से बांधता है ? (कइ वेदेइ य पगडी ?) कितनी प्रकृतियां वेदता है ? (अणुभागो कइविहो कस्स ?) किसका कितने प्रकार का अनुभाव होता हैं ? ॥१॥ ___टीकार्थ :- वाईसवें पद में क्रिया नामक पद में नारक आदि गतिपरिणामोंमें परिणत जीवों की प्राणातिपात आदि क्रियाओं का निरूपण किया गया। ____ इस तेईसवें कर्मप्रकृति पद में कर्मबन्ध परिणाम की प्ररूपणा करने के लिये अधिकार द्वार गाथा का कथन किया गया है--
(१) कर्मप्रकृतियां कितनी है ? इत्यादि निरूपण करनेवाला प्रथम द्वार । (२) जीव कमप्रकृतियों को किस प्रकार बांधता है ? यह दुसरा द्वार है। (३) कितनेक स्थानों से जीव कर्मबन्धक होता है ? यह तीसरा द्वार है।
તેવીસમા કર્મપ્રકૃતિ પદને પ્રારંભ
અધિકાર દ્વાર ગાથા शहा:- (कइ पगडी) प्रकृतियो की छे ? (कह बधइ) शते अपाय ? (कइहि वि ठाणेहिं बधए जीवो ?) 04 32। स्थानाथा मांधे छ? (कइ वेदइय पगडी?) टक्षी प्रति. योन येहे छे? (अणुभागो कइविहो कस्स?) ना डेटा प्रारना मनुमा हाय छ ? ॥u
ટીકાઈ- બાવીસમાં ક્રિયાનામક પદમાં નારક આદિ ગતિ પરિણામ પરિણુત ની પ્રાણાતિપાત આદિ ક્રિયાઓનું નિરૂપણ કરાયું છે.
આ તેવીસમાં કર્મપ્રકૃતિ પદમાં કર્મબન્ધ પરિણામની પ્રરૂપણા કરવા ને માટે અધિકાર દ્વારગાથાનું કથન કરાયું છે
(१) प्रतियो सी छ ? प्रत्याहि ३५४ ४२ना प्रथम वा छे. (૨) જીવ કમપ્રકૃતિને કેવી રીતે બાંધે છે? એબીજું દ્વાર છે. (૩) કેટલા સ્થાનેથી છવ કર્મ બન્ધક થાય છે? એ ત્રીજી દ્વાર છે.
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫