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________________ १४५ प्रभेयबोधिनी टीका पद २२ सू. ९ प्राणातिपातविरमणनिरूपणम् वत्तियाओ किरियाओ, अपञ्चक्खाणकिरियाओ विसेसाहियाओ, पारिहयाआ विषे साहियाआ, आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहि याओ,मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ।पण्णवणाए बावीसइमं पयं समत्तं २२।" ॥सू. ९ ॥ छाया-प्राणातिपातविरतस्य खलु भदन्त ! जीवस्य किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते यावमिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया क्रियते? गौतम! प्राणातिपातविरतस्य जीवस्य आरम्भिकी क्रिया स्यात् क्रियते स्यान्नो क्रियते, प्राणातिपातविरतस्य खलु भ. दन्त ! जीवस्य पारिग्रहिकी क्रिया क्रियाते ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, प्राणातिपातविरतस्य खलु भदन्त ! जीवस्य मायाप्रत्यया क्रिया क्रियते ? गौतम ! स्यात् क्रियते, प्राणातिपातविरतविशेषवक्तव्या शब्दार्थः (पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवस्स कि आरंभिया किरिया कजइ?) हे भगवन् ! प्राणातिपातविरत जीवको क्या आरंभिका क्रिया होती है ? (जाव मिच्छा दंसणवत्तिया किरिया कज्जइ? ) यावत मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है ? (गोयमा! पाणाइवायविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ) हे गौतम!प्राणातिपात विरत जीव को कदाचित् आरंभिकी क्रिया होती है ( सिय नो कज्जइ) कदाचित् नहीं होती, (पाणाइवायविरयस्स णं भंते जीवम्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ ?) हे भगवन् क्या प्राणातिपात से विरत जीवको पारिग्रहिकी क्रिया होती है?(गोयमा! जो इणटे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। (पाणाइयायविरयस्सण भंते ! जीवस्स मायावत्तिया किरिया कज्जइ ?) हे भगवन् ! प्राणातिपात से विरत जीव को-मायाप्रत्यया क्रिया होती है ? (गोयमा ! सिय कज्जइ, सिय नो कजइ) हे गातम कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। પ્રાણાતિપાત વિરત વિશેષ વક્તવ્યતા शहाथ:- (पाणाइवायविरयस्स णं भंते! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जइ ?) भगवान प्रामा तिपातविरत ने शुमार मिया हाय ? (जाव मिच्छ दंसणवत्तिया किरिया कज्जई) यापत मिथ्याशन प्रत्यया या थायछ ? (गोयमा ! पाणाइयायविरमणस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जइ) है गौतम! प्रातिपात विरत ने हाथित् मार लिही लिया थाय छ (सिय नो कज्जइ) दायित्नथा यती... (पाणाइवायविरयस्स ण भंते जीवस्स परिग्गहिया किरिया कज्जइ १) भगवन् प्रातिपातथा विरत ने पारिवाहिती या थाय छ? (गोयमा! णो इणढे समहे). गौतम! । मथ समथ नया (पाणाइवायविरयस्स णं भंते ! जीवरस मायावत्तिया किरिया कज्जइ ? )मापन ! प्रतिपातथा विरत पने भायाप्रत्यया लिया थाय छ ? (गोयमा ! सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ) હે ગૌતમ કદાચિત્ થાય છે, કદાચિત્ નથી થતી, ૧૯ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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