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________________ ___ ११२३ प्रमेय बोधिनी टीका पद ३६ सू० १५ केवलिसमुद्घातप्रयोजननिरूपणम् युञ्जन् किम् औदारिकशरीरकाययोग युनक्ति ? औदारिकमिश्रशरीरकाययोगं युनक्ति ? कि वैक्रियशरीरफाययोग युनक्ति, वैक्रियमिश्रशरीरकारयोगं युनक्ति ? किम् आहारकशरीरकाययोग युनक्ति आहार कमिश्रशरीरकाययोगं युनक्ति ? किं कार्मणशरीरकाययोगं युनक्ति? गौतम ! औदारिकशरीरकाययोगमपि युनक्ति. औदारिकमिश्रशरीरकाययोगमपि युनक्ति, नो वैक्रियशरीरकाययोगं युनक्ति, नो वैक्रियमिश्रशरीरकाययोगं युनक्ति, नो आहारकशरीरकाय. जोगं जुजइ) हे गौतम ! न मनोयोग का उपयोग लगाता है, न वचनयोग का उपयोग लगाता है, काययोग का उपयोग लगाता है (कायजोगे णं झुंजमाणे किं ओरालियकायजोगं जुजइ ?) काययोग का उपयोग लगाता हुआ क्या औदारिक काययोग का उपयोग लगाता है ? (ओरालियमीसासरीर कायजोगं जुजइ) औदारिकमिश्रशरीर काययोग का उपयोग लगाता है ? (किं वेउब्वियसरीरकाय जोगं जुजह ?) क्या वैक्रियशरीर काययोग का उपयोग लगाता है ? (वेउब्वियमीसासरीरकायजोगं जुजइ ?) वैक्रियमिश्रशरीर काययोग का उपयोग करता है ? (fक आहारगसरीरकायजोगं झुंजह ?) क्या आहारकशरीर काययोग का उपयोग करता है ? (आहारगमीसासरीरकायजोगं जुजइ ?) आहारकमिश्रशरीर काययोग का उपयोग करना है ? (कि कम्मगसरीर कायजोर्ग जुंजइ ?) क्या कार्मणशरीर काययोग का उपयोग करता है ? (गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं वि जुजइ) हे गौतम ! औदारिकशरीर काययोग का भी उपयोग करता है (ओरालियमीसासरीरकायजोगं वि मुंजइ) औदारिकमिश्रशरीर काययोग का भी उपयोग करता है (नो वे उदिवसरीरकाथजोगं जुजा) મને યોગને ઉપયોગ નથી કરતા, વચનગને ઉપયોગ નથી કરતા પણ કયોગના ઉપગ કરે છે. (कायजोग जुजमाणे किं ओरालियकायजोग जुजइ ?) ययेन पयोमरी ai शु मारि: योगना 342॥ ४२ छ ! (ओरालियमीसासरीरकायजोग जुजइ) मोहारि મિશ્ર શરીર કાયાગને ઉગ કરે છે? (किं वेउव्वियसरीरकायजोग जुंजइ ?) शुवैठिय शरी२ यानी पयो ४२ छ ? (वेउब्धियमीसासरीरकायजोग जुजइ ?) वैयि मिश्र शरी२ ४५यागना उपयोग ४३ छ ? (किं आहारगसरीरकायजोग जुजइ) शुभाडा२३४२ ४ययोगमा ७५यो। २ छ ? (आहारगमीसासरीरका यजोग जुजइ ?) मा २ मिश्रशरीर योगनी उपयो॥ ४२ छ ? (कि कम्मगसरीरकायजोग जुंजइ) शुभ शरी२ ४ययेने उपयोग ४२ छ, (गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोग पि जुंजइ) हे गौतम! मोहा२ि४ शरी२ययोगना पर उपयो॥ ४२ छ. (ओरालियरस मीसासरीरकायजोग पि जुजइ) गोहा२ि४ मिश्र शरीर કાયાગને પણ ઉપયોગ કરે છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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