SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९२२ प्रज्ञापनासूत्रे करोति द्वितीयसमये कपाटं करोति, तृतीयसमये मन्थं करोति, चतुर्थे समये लोकं प्रयति, पश्चमे समये लोकं प्रतिसंहरति, षष्ठे समये मन्थं प्रतिसंहरति, ससमे समये कपाट प्रतिसंहरति, अष्टमे समये दण्ड प्रतिसंहरति, दण्डं प्रति संहत्य ततः पश्चात् शरीरस्थो भवति, स खल्ल भदन्त ! तथा समुद्घातगतः किं मनोयोगं युनक्ति वचोयोगं युनक्ति ? काययोगं युनक्ति ? गौतम! नो मनोयोगं युक्ति, नो वचोयोगं युनक्ति काययोग युनक्ति, कायपोगं खलु भदन्त ! घात कितने समय का कहा है ? (गोयमा! असमइए पण्णत्ते) हे गौतम ! आठ समय का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (पढमे समए दंडं करेइ) प्रथम समय में दंड करता है (बीए समए कवाडं करेइ) दुसरे समय में कपाट करता है (ततिए समए मंथं करेइ) तीसरे समय में मन्थान करता है (चउत्थे समए लोग पूरेइ) चौथे समय में लोक को व्याप्त करता है (पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ) पांचवें समय में लोक पूरण को सिकोडता है (छट्टे समए मंथं पडिसाइरह) छठे समय में मन्थान को सिकोडता हैं (सत्तमए समए कवाडं पडिसाहरइ) सातवें समय में कपाट को सिकोडता है (अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ) आठवें समय में दंड को सिकोडता है (दंडं पडिसाहरेत्ता) दंड को सिकोड कर (तो पच्छा) तस्पश्चात् (सरीरस्थे भवइ) शरीरस्थ होता जाता है। (से णं भंते ! तहा समुग्घायगए) हे भगवन् ! उस प्रकार समुद्घात प्राप्त केवली (किं मणजोगं जुजइ) क्या मनोयोग का उपयोग लगाता है ? (वइजोगं जुंजइ) वचनयोग का उपयोग लगाता है ? (कायजोगं जुजह ?) काययोग का उपयोग लगाता है ? (गोयमा! नो मणजोगं जुजइ, नो वइजोगं जुजई, कायसमयाना ॥ छ ? (गोयमा ! अदुसमइए पग्णत्ते) हे गौतम ! 418 समयना ४ . (त जहा) ते प्रारे-(पढमे समए दंड करेइ) प्रथम समयमा ४ ४२ छ (बीए समए कवाडं करेइ) मी समयमा पाट ४२ छ (तइए समए मंथं करेइ) श्रीक समयमा भन्थान ४२ (चइत्थे समए लोग पूरे इ) याथा समयमा ४२ ०यात ४२ छ (पंचमे. समए लोय पडिसाहरइ) पांयमा समयमा पुरधुने साये छ (छट्टे समए मंथं पडिसाहरइ) छट्टो समयमा भयानक आये छे (सत्तमए समए कवाडं पडिसाहरइ) सातमा समयमा पाटने साये छ (अट्रमे समए दंड पडिसाहरइ) आमा सयमां ने सहाय छ (इंड परिसाहरेत्ता) ने सथित ४शन ( तओ पच्छा) तत्पश्चात् (सरीरत्ये भवइ) शरी२२५ २६ जय छे. (से ण भंते । तहा समुग्घाए गए) गवन् ! से प्रारे समुद्धात प्राप्त पक्षी (किं मणजोग जुंजइ १) शुभनयने। 6421 ४२ छ (बइजोग जुंजइ) क्यन योगना अपय ४२ छ ? (कायजोग जुजइ) ययोगन। उपयो। ४२ छ शु? (गोयमा नो मणजोग जुजइ, नो वइजोगं जुजइ, कायजोग जुंजह ) 3 गौतम । શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy