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प्रमेयवोधिनी टीका पद २२ सू. ६ क्रियाविशेषनिरूपणम्
क्रिया नियमात् क्रियते, मनुष्यस्य, यथा जीवस्य वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकदेवस्य यथा नैरयिकस्य यं समयं खलु भदन्त ! जीवस्य आरम्भिकी क्रिया क्रियते तं समयं परिग्रहकी क्रिया क्रियते ? एवमेते - यस्य यं समयं यं देश, यत्प्रदेशेन च, चत्वारो दण्डका ज्ञातव्याः यथा नैरयिकाणां तथा सर्वदेवानां ज्ञातव्यं यावद वैमानिकानाम् || सू. ६ ॥
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टीका-पूर्व क्रियायाः प्ररूपणे कृतेऽपि प्रकारान्तरेण तां क्रियामेव प्ररूपयितुमाह- 'कई णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओ !' हे भदन्त ! कति खलु क्रियाः प्रज्ञप्ताः ! भगवानाह - 'गोयमा ! 'हे गौतम ! ' पंच किरियाओ पण्णत्ताओ' पञ्च क्रियाः प्रज्ञप्ताः, क्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यान क्रिया नियम से होती है ।
( मणूस जहा जीवस्स ) समुच्चय जीव के समान मनुष्यको क्रियाएँ जानना ( वाणमंतर जोइसियवेमाणियस्स जहा नेरइयस्स ) वानव्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक को नारक के समान समझलेवे ।
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(जं समयं ण भंते! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ) हे भगवन् जिस समय जीव को आरंभिक क्रिया होती है (तं समयं परिगहिया किरिया कज्जइ ? ) क्या उस समय परिग्रहिकी क्रिया होती है? ( एवं एते जस्स, जं देसं जं पएसेणं य चत्तारि द'डगा यव्वा ) इस प्रकार ये जिसको, जिस समय, जिस देश से और प्रदेश से ये चार द ंडक जानने चाहिए ( जहा नेरइयाणं तहा सव्वदेवाणं नेयव्व) जैसे नारकों को उसी प्रकार सब देवों को जानना चाहिए (जाव वेमाणिया णं) यावत् वैमानिकों तक
टीकार्थ- पहले क्रियाओं का निरूपण किया गया है किन्तु अब प्रकारान्तर से क्रियाओं का ही निरूपण किया जाता है
જેને મિથ્યાદર્શન પ્રત્યયા ક્રિયા થાય છે, તેને અપ્રત્યાખ્યાનક્રિયા નિયમ થી થાય છે
(मणूस जहा जीवस्स) समुय्यय कवना उथनप्रमाणे समग्र मनुष्यनी डियागो लागुवी (वाणमंतरजोइ सय वैमाणियस्स जहा नेरइयस्स) वानव्यन्तर ज्येति, वैमानि ना२४ नासमान भगवा (जं समयं णं भते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जइ) हे भगवन् ! के समये लवनी भार लिडी डिया थाय छे (तं समयं परिग्गहिया किरिया कज्जइ १) शु ते समये पारिग्रडिडी डिया थाय छे ? ( एवं एते जस्स, जं देस, जं पएसेणं य चत्तारि दंडगा णेयव्या) से प्रारे मे लेने के समये, ने देशथा भने प्रदेशथी, मा यार ह35 लपा लेहये (जहा नेरइयाण तहा सव्वदेवाण नेयव्व') भेभ नारडोने से प्रहारे मघा हेवाने लगुवा हो ( जाव वैमाणियाण) यावत् વૈમાનિકા સુધી એ પ્રમાણે સમજવુ
ટીકા :-પહેલાં ક્રિયાઆનું નિરૂપણ કરાયું છે કિન્તુ હવે પ્રકારાન્તરથી ક્રિયાઆનુ જ નિરૂપણ કરાય છે
श्री गौतमस्वाभी- हे लगवन् ! डियागो डेंटली उहेली छे ?
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫