SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1079
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६६ प्रज्ञापनास्त्रे घातेन समय हन्यते, समवहत्य यान् पुद्गलान् निक्षिपति तैः खलु भदन्त ! पुद्गलैः कियत् क्षेत्रम् आपूर्णम्, कियत् क्षेत्रं स्पृष्टम् ? गौतम ! शरीरप्रमाणमात्रं विष्कम्भवाहल्येन आयामेन जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम् उत्कृष्टेन असंख्येयानि योजनानि एकदिग् एतावत् क्षेत्रम् आपूर्णम् एतावत् क्षेत्रं स्पृष्टम् तत् खलु भदन्त ! क्षेत्रं कियत्कालस्य आपूर्णम् ? किय. कालस्य स्पृष्टम् ? गौतम ! एकसमयेन वा द्विसमयेन या त्रिसमयेन वा चतुः समयेन वा निरबसेसं जाय वेमाणिए) इस प्रकार सम्पूर्ण कथन वैमानिक तक समझना। (एवं कसायममुग्घाओ वि भाणियव्यो) इसी प्रकार कषायसमुद्घात भी कहना चाहिए। - (जीचे गं भंते ! मारणंतियसमुग्घाएणं समोहणइ) हे भगवन् ! जीव मार. णान्तिकसमुद्घात से समवहत होता है (समोहणिसा) समघहत होकर (जे पोग्गले णिच्छुभइ) जिन पुद्गलों को निकालना है (तेहिं णं भंते ! पोग्गलेहिं) हे भगवन् ! उन पुगुल से (केवइए खेत्ते अप्फुण्णे ?) कितना क्षेत्र पूरित होता है ? (केवइए खेत्ते फुडे ?) कितना क्षेत्र स्पृष्ट होता है ? (गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ते) हे गौतम! शरीरप्रमाण मात्र (विक्खंभबाहल्लेणं) विस्तार और मोटाई से (आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज इभाग) लंबाई में जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग (उक्कोसेणं असंखेजाई जोयणाई) उत्कृष्ट असं ख्यात योजन (एगदिसि) एक दिशा में (एयइए खेत्ते) इतना क्षेत्र (अफुण्णे) पूरित होता है (एचइए खेने फुडे) इतना क्षेत्र स्पृष्ट होता है (से णं भंते ! खेत्ते केवइकालस्स अफुण्णे ?) हे भगवन् ! वह क्षेत्र कितने काल में पूरित होता है ? (केवाइकालस्स फुडे ?) कितने काल में स्पृष्ट होता है ? (गोयमा ! एगसमइएणं सपू थन मानिः सुधी सभा (एवं कसायसमुग्धाओ वि भाणियव्यो) से प्रारे કવાયસમુદ્દઘાત પણ કહેવા જોઈએ. (जीवे णं भंते ! मारणंनियसमुग्याएण समोहणइ) भगवन् ! १ भारयति समुद्धा. तथा समपहत थाय छ (समोह णित्ता) सभयत धन (जे पोग्गले णिच्छुाइ) भगवन् ! જે પુદ્ગલેને કાઢતા રહે છે. _(तेहि ण भंते ! पोग्गलेहि) भगवन् ! ते पुगसाथी (केवइए खेत्ते अप्फुरणे १) ४८९॥ क्षेत्र पूरित थाय ? (केवइए खेत्ते फुड़े ?) या क्षेत्र नष्ट थाय ? (गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ते) गौतम शरी२प्रमाण मात्र (विक्खंभवाहल्लेण) विस्तार मने मारा था (आयामेण जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) मा मा धन्य मखनी म मामा भाग (उक्कोसेण असंखेज्जाइ जोयणा३) Bee मसण्यात येन (एगदिसिं) मे (शम (एवइए खेत्ते) मेटा क्षेत्र (अफुरणे) धुरित थाय छे (एवइए खेत्ते फुडे) मेटसा क्षेत्र २Yष्ट थाय छ. (से णं भंते ! खेत्ते केवइकालस्स अस्फुण्णे ?) भगवन् । ते क्षेत्र ३ मा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy