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________________ ED प्रयमेबोधिनी टीका पद ३६ सू० ९ कषायसमुद्घातनिरूपणम् _____१०३१ ल्लोभसमुदघातः, एवम् एतेऽपि चत्वारो दण्डकाः, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य नैरयिकत्ये कियन्तः क्रोधसमुद्घाता अतीताः ? गौतम ! अनन्ताः, एवं यथा वेदनासमुद्घातो भणित स्तथा क्रोधसमुद्घातोऽपि निरवशेषं यावद् वैमानिकत्ये, मानसमुद्घातो मायासमुद्घातोऽपि निरयशेष यथा मारणान्तिकसमुद्घातः, लोभसमुद्घातो यथा कषायसमुद्घातः, नवर सर्वजीवा असुरादिनैरयिकेषु लोभकषायेण एकोत्तरिया ज्ञातव्याः, नैरयिकाणां भदन्त ! नैरयिकत्ये कियन्तः क्रोधसमुद्घाता अतीताः ? गौतम ! अनन्ताः, कियन्त: पुरस्कृताः ? गौतम ! अनन्ताः, एवं यावद् वैमानिकत्वे, एवं स्वस्थानपरस्थानेषु वि) इस प्रकार जैसे वेदनासमुद्घात कहा पैसा क्रोधसमुद्घात भी (निरवसेस) पूरा (जाय वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिक पर्याय में (माणसमुग्घाए मायाममुग्घाए वि निरवसेस) मानसमुदघात, मायासमुदघात भी पूरा (जहा मारणंतियसम ग्घाए) जैसा मारणान्तिकसमुद्घात (लोहसमुग्धाओ जहा कसायसमुग्घाओ) लोभसमुदघात, कषायसमुद्घात के समान (नवरं) विशेष (सध्यजीचा) सभी जीव (असुरादि नेरइएस) असुर आदि, नारकों में (लोभकसाएणं) लोभ कषाय से (एगुत्तरियाए) एक से लेकर (नेपव्या) जानना चाहिए । (नेरइयाणं भंते । नेरइयत्ते केवइया कोहसमुग्घाया अईया ?) हे भगवन् ! नारकों के नारकपने में कितने क्रोध कषाय अतीत हैं ? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया पुरेक्खडा) भावी कितने ? (गोयमा! अगंता) हे गौतम ! अनन्त (एवं जाय येमाणियत्ते) इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय में (एवं सहाणपट्ठाणे) इस प्रकार स्वस्थान-परस्थानों में (सव्यत्य भाणियव्या) सर्वत्र कहना चाहिए (सव्यजीवाणं चत्तारि वि समुग्घाया) सब जीवों के चारो अणंता) हे गौतम ! सनन्त (एव जहा वेयणास मुग्घाओ भणिओ तहा कोहसमुग्घाओ वि) ये ४२ या वहनासमुधात त घसमु६३ त ५९५ (निरवसेसं) पुस (जाव वेमाणियत्ते) यापत् वैमानि पर्यायमा (माणसमुग्धाए, मायासमुग्घाए वि निरवसेस) भान सभुधान, भाया समुद्धात ५५ ५२(जहा मारणंतियसमुग्धाए) 24भा२॥न्ति:सभुधात (लोहसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्धाओ) मिसमुद्धात ४ायसभुधातना समान (नवर) विशेष (सव्य जीवा) मा ७५ (असुरादि नेरइएसु) मसुर मा, नाम (लोहकसाएण) समायथा (एगुत्तरियाए) मेथी सधन (नेयव्या) atyan . (नेरइयाण भंते ! नेरइत्ते केवइया कोड्समुग्घाया अईया) 3 लान् ! नाना ना२४५२ ३८॥ ५४पाय मतीत छ ? (गोयमा ! अणंता) : गौतम ! अनन्त (केवइया पुरेक्खडा) माप 32 ? (गोयमा ! अणंता) गौतम ! मनन्त (एव जाव वेमाणियत्ते) से प्रभारे यावत् वैमानि पयिभा. (एवं सटाणपरद्वाणेसु) से प्रारे २५२थान५२स्थानमा (सव्यस्थ भाणियव्या)सत्र नये (सव्व जीवाणं चत्तारि वि समु. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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