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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० ८ जीववेदनादिसमुद्घाताल्पबहत्यनिरूपणम् १००७ न्तिकसमुद्घातेन वैक्रियसमुद्घातेन समवहतानाम् असमवहतानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पा या बहुका वा तुल्या या विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका नैरयिका मारणान्तिकसमुद्घातेन समयहताः, वैक्रियसमुदघातेन समवरता असंख्येयगुणाः, कषायसमुद्घातेन समवहताः संख्येयगुणाः, वेदनासमुदघातेन समवहताः संख्येयगुणाः, असमवहताः संख्येय गुणाः, एतेषां खलु भदन्त ! असुरकुमाराणां वेदनासमुद्घातेन कषायसमुद्घातेन मारणा न्तिकसमुद्घा तेन वैक्रियसमुद्घातेन तैनससमुद्घातेन समवहतानाम् असमवहतानाच कतरे ग्घाएणं समोहया विसेसाहिया) वेदनासमुद्घात से समवहत विशेषाधिक हैं (असमोहया असंखिनगुणा) असमचहत असंख्पातगुणा हैं। (एएसि णं भंते ! नेरइयाणं) हे भगवन् ! इन नारकों में (यणासमुग्घाएणं कसाय. समग्याएणं मारणंतियसमुग्घाएणं वे उधिधसमुग्घा एणं) वेदनासमुदवात से, कषायसमुद्घात से, मारणांतिकसमुदंघात से, क्रियसमुदघात से (समोह याणं असमोहयाण य) समवहतों और असमवहतों में से (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा चा, बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) अल्प, बहुत, तुल्य अथया विशेषाधिक हैं ? (गोयमा ! सम्बत्थोया नेरइया मारणंतिय समुग्धाएणं समोहया) हे गौतम ! सब से कम नारक मारणान्तिकसमुदघात से समयहत हैं (वेंउब्धियसमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा) वैक्रियसमुदघात से समवहत असंख्यात गुणा हैं (कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेजगुणा) कषाय समुदघात से समवहत संख्यात गुणा (वेयणासमुग्घाएणं समोहया संखेजगुणा) वेदनासमुदघात से समयहत संख्यातगुणा (असमोया संखेजगुणा) असम वहत संख्यातगुणा (एएसिण भंते ! नेरइयाण) भगवन् ! २५नामा (वेयणासमुग्घारण कसाय. समुग्घाएण, मारणंतियसमुग्घाएण येउव्वियसमुग्धारण) वेना समुद्धातथी, ४षाय समुद घाती, भारति समुद्धातया, पैठि५० धातथी (समोहयाण , असमोहयाण य) सभ५हत सने असम माथी (कयरे कयरेहितो) ] डोनाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा !) ६५ घ, तुल्य मा विशेषाधि छ ? (गोयमा ! सव्वत्थोवा नेरइया मारणंतियसमुग्धारण सभोया) हे गौतम ! माथी माछा ना२४ भाjilds समुद्धातथी सभपडत छे (वेउन्धियसमुन्धारण समोहया असंखेज्ज गुणा) पैठिय समुधातथी सम१६ असभ्यात छे (कसायसमुग्धारण समोहया संखे ज्जगुणा) ४ाय सभुधातथी सभडत सयामा छे (वेयणासमुरघाएण समोया संखेज्जगुणा) ३६ना समुद्धातयी सभहत सभ्याता॥ (असमोहया संखेज्जगुणा) मसમહત સંખ્યાત ગણા છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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