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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २१ सू० ११ औदारिकादि शरीरवतां अल्पबहुत्वनिरूपणम् ८१९ शरीरस्य उत्कृष्टा अवगाहना संख्येयगुणा, तैजसका र्मणयोर्द्वयोरपि तुल्या उत्कृष्टा अवगाहना असंख्येयगुणा, जघन्योत्कृष्टायामवगाहनायां सर्वस्तोका औदारिकशरीरस्य जघन्या अवगा - हना, तैजसकार्मणयोर्द्वयोरपि तुल्या जवन्या अवगाहना विशेषाधिका, वैक्रियशरीरस्य जघन्या अवगाहना असंख्येयगुणा, आहारकशरीरस्य जघन्याभ्योऽवगाहनाभ्य स्तस्य चैव उत्कृष्टा अवगाहना विशेषाधिका, औदारिकशरीरस्य उत्कृष्टा अवगाहना संख्येयगुणा, वैक्रियशरीरस्य रकशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है (उक्कोसियाए ओगाहणाए) उत्कृष्ट अवगाहना में (सम्वत्थोवा आहारगसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा ) सबसे कम आहारकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना है (औरालियसरीरस्स कोसिया ओगाहणा संखेजगुणा) औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है (वेच्वियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा ) वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है (तेयाकम्मगाणं दो वि तुल्ला उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा) तैजस और कार्मण दोनों की तुल्य उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है। ( जहण्णुकोसियाए ओगाहणाए ) जघन्योत्कृष्ट अवगाहना में (सव्वत्थोवा ओरालिय सरीरस्स जहण्णिया ओगाहणा, सब से कम औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना है (तेयाकम्मगाणं दोन्ह वि तुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया) तैजस- कार्मण दोनों की बराबर जघन्य अवगाहना विशेषाधिक है (वेवसरीरस्त जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा) वैक्रियशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणा है (आहारगसरीरस्स जहण्णियाहिंतो ओगाहणाहितो तस्स चेव उक्कोसया ओगाहणा विसेसाहिया) आहारकशरीर की जघन्य अवगाहना से उस की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है (ओरालिय सरीरस्स शरीरनी धन्य अवगाहुना असण्यातली छे (उक्कोसियाए ओगाहणार ) ष्ट अवगाढनामां (सव्त्रत्थोवा आहारगसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा ) मधाथी माछी मारशरीरनी उत्कृष्ट अवगाडुना छे (ओरालियसरीरस्न उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा ) मोहारि५शरीरजी उत्कृष्ट अबगाडुना संख्यातगए । छे (वेडव्त्रियसरीरम्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेज्जगुणा ) वैयिशरीरनी उत्ष्ट अवगाहना संध्यातली छे तेया कम्मगाणं दोवि तुल्ला उक्कोसिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा) तै४स मने अर्मा मन्त्रेनी सरमी उत्कृष्ट अवगाहना यस यातली छे. (Geogकोसिया ओगाहणाएं ) धन्योत्ष्ट अवगाहनामां (सब्वत्थोवा ओरालियसरी रस जहणिया ओगाणा) मधाथी मोछी मोहारि शरीरनी धन्य अवगाहना छे (तेया कम्माणं दो तुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया) तैस-शु मन्नेनी परामर न्धन्य वाडना विशेषाधि छे (वेउन्त्रिसरीरस्स जहणिया ओगाहना असंखेज्जगुणा ) वैयिशरीरनी धन्य अवगाहना असंतगण छे (आहारगसरीरस्स जहणिरहितो ओगाहणा श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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