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________________ ८०२ __ प्रज्ञापनास्त्रे भदन्त ! कतिदिग्भ्यः पुद्गला उपचीयन्ते ? गौतम ! एवंञ्चैव यावत् कार्मणशरीरस्य, एवम् उपचीयन्ते, अपचीयन्ते, यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरं तस्य वैक्रियशरीरम्, यस्य वैक्रिशरीरं तस्य औदारिकशरीरम् ? गौतम ! यस्य औदारिकशरीरं तस्य वैक्रियशरीरं स्याद् अस्ति, स्थानास्ति, यस्य वैक्रियशरीरं तस्य औदारिकशरीरं स्याद अस्ति, स्यान्नास्ति, यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरं तस्य आहारकशरीरं, यस्य आहारकशरीरं तस्य औदारिकतैजस और कार्मणशरीर के जैसे औदारिक शरीर के _ (ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कइदिसिं पोग्गला लवचिज्जति ?) हे भगवन औदारिक शरीर के पुद्गल कितनी दिशाओं से उपचित होते हैं ? (गोयमा ! एवं चेब) हे गौतम! इसी प्रकार (जाव कम्मगसरीरस्म) कार्मणशरीर तक (एवं उवचिज्जति) इसी प्रकार उपचित होते हैं (अवचिज्जति) अपचित होते हैं। (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं ?) हे भगवन् ! जिस के औदारिकशरीर होता है, उसके वैक्रियशरीर होता है ? (जस्स वेउब्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ?) जिसके वैक्रियशरीर होता है, उसके औदारिकशरीर होता है ! (गोयमा !जस्स ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं सिय अस्थि सिय नस्थि) हे गौतम ! जिस के औदारिकशरीर होता है, उसके वैक्रियशरीर कदा. चित् होता है, कदाचित् नहीं होता (जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अस्थि, सिय नस्थि) जिस के वैक्रियशरीर होता है, उसके औदारिकशरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं) हे भगवन् ! जिसके औदारिकशरीर होता है, उसके आहारकशरीर होता है ? (जस्स आहारगसरीरं (ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कइदिसिं पोन्गला उवचिजति ?) भगवन् ! यौहार:शरीरना पास की हाथी अपयित थाय छ (गोयमा ! एवंचेव) गौतम ! मेर ४ारे (जाव कम्मगसरीरस्स) यावत् शरीर सुधी (एवं उवचिज्जति) को प्रारे ५यित थाय छ (अवचिज्जंति) २५५यित थाय छे. (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं ?) भगवन् ! रेने मोह।२४शरी२ हाय छ, तन वैठियशश हाय छ १ (जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ?) मेनु वैठियशरीर डाय छ, तनु मोहारि४शरी२ डाय छ ? (गोयमा ! जस्स ओरालियसरीर तस्स वेउब्वियसरीर सिय अत्थि सिय नस्थि) ३ गौतम ! न मोहा२ि४शरीर डाय छ, तेन। यिशरीर ४ायित राय छ भने ४ायित् नया हातi (जस्स वेउव्वियसरीर तस्स ओरालियसरीर सिय अत्थि, सिय नस्थि) रेना वैठिय।२।२ ५ छ, तेना मोहा२३शरी२ हथित डाय छ, અને કદાચિત નથી હોતાં. (जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीर) ३ भाप ! रेनु मोहा२ि४. शरीर डाय छ १ तेनु मा२४२२१२ उत्य छ, (जस्स आहारकसरीर तस्स ओरालियसरीरं १) श्री प्रशानसूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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