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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद २९ ३० १० पुद्गलचयमनिरूपणम् ब्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं णस्थि, जस्ल वि आहारगसरीरं तस्स वि वेउब्वियसरी स्थि, तेयगकम्माइं जहा ओरालिएण समं तहेव आहारगसरीरेण वि सम्ह तेया कम्मगाई चारेयव्वाणि, जस्स णं भंते ! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं जस्स कम्मगसरीरं तस्स तेयगसरीरं ? गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं णियमा अस्थि, जस्स वि कम्मगसरीरं तस्स वि तेयगसरीरं गियमा अस्थि ॥सू० १०॥ छाया-औदारिकशरीरस्य खलु भदन्त ! कतिदिग्भ्यः पुद्गलाश्चीयन्ते ? गौतम ! निघातेन षडदिग्भ्यः, व्याघातं प्रतीत्य स्थात् त्रिदिग्भ्यः, स्थाच्चतुर्दिग्भ्यः, स्यात् - पश्चदिग्भ्यः, वैक्रियशरीरस्य खलु भदन्त ? कतिदिग्भ्यः पुद्गलाश्चीयन्ते ? गौतम ! नियमात पइदिग्भ्यः, एवम् आहार शरीरस्यापि, तैजसकार्मणानां यथा औदारिकशरीरस्थ, औदारिकशरीरस्य खलु पुदगलचयन वक्तव्यता शब्दार्थ-(ओरालियसरीरस्स णं भंते ! काइदिसि पोग्गला चिज्जति ?) हे भगवन् ! औदारिकशरीर के पुद्गल कितनी दिशाओं से चध को प्राप्त होते है ? (गोयमा! निव्याघाएणं छद्दिसि) हे गौतम ! व्शघात न हो तो छहों दिशाओं से (वाघार्य पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चउद्दिसिं) व्याघात हो तो कदाचितू तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से (सिय पंचदिसिं) कदाचित् पांच दिशाओं से (उब्वियसरीरस्स पं भंते ! कइदिसि पोग्गला चिज्जंति ?) हे भगवन् ! वैक्रियशरीर के पुद्गल कितनी दिशाओं से चयको प्राप्त होते हैं ? (गोयमा! णियमा छद्दिसि) हे गौतम ! नियम से छहों दिशाओं से (एवं आहारगसरीरस्स वि) इसी प्रकार आहारकशरीर के भी (तेयाकम्मगाणं जहा ओरालि यसरीरस्स) - પુદ્ગલચયન વક્તવ્યતા ____१४:५'-(ओरालिय सरीररस णं भंते ! कहदिसि पोग्गला चिजति) मावन् ! महार: शरन Y हिशासायी सयने प्राप्त थाय छ ? (गोयमा! निव्वाघाएणं छद्दिसि) उ गौतम ! व्याधात न डाय तो छ हिशाथी (वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउद्दिसिं) व्याघात होय तो हथित हिशामाथी, ४४ायित् यार शामेथी (सिय पंचदिसिं) ४ायितु पांय हिशाथी (वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! कइदिसि पोग्गला चिज्जंति ?) भगवन् वैठियशशरना युद्ध 2ी हिशामाथी ययने प्रा1 थाय छ ? (गोयमा ! णियमा छदिसि) है गौतम ! नियमयी ७ दिशामाथी (एवं आहारगसरीररस त्रि) ४ ३ मा २४शरीरन पर (तेयाकम्मगाणं जहा ओरालियसरीरस्स) तै४५. मने भि २०२१२॥ २॥ मोहाना १० १०१ श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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