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________________ ७०८ प्रज्ञापनासूत्रे एकत्रिंशद् धनूंषि एका रत्निः, उत्तरक्रिया षट्षष्टिर्धनूंषि द्वे रत्नी, पङ्कप्रभाया मवधारणीया द्विष्ट धनूंषि द्वे रत्नी, उत्तरक्रिया पञ्चविंशं धनुःशतम्, धूमप्रभाया भवधारणीया पञ्च विंशं धनुःशतम्, उत्तरखैक्रिया सार्द्धद्वे धनुःशते, तमायाः भवधारणीया सार्द्ध द्वे धनुःशते, उत्तरक्रिया पञ्चधनुःशतानि, अधः सप्तम्याः भवधारणीया पञ्चधनुःशतानि, उत्तरवै क्रिया धनुःसहस्रम् एवम् उत्कृष्टेन, जघन्येन भवघारणीया अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्तरवैक्रिया अङ्गुलस्य संख्येयभागम्, तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरस्य खलु भदन्त । किं महालया धारणिज्जा एक्कतीसं घणूई एक्का रयणी) भवधारणीय एकतीस धनुष और एक हाथ (उत्तर उब्विया छावहिं घणूइं दो स्यणीओ) उत्तर वैक्रिय छयासठ धनुष और दो हाथ (पंकप्पभाए भवधारणिजा बादहिं घणू दो रथणीओ) पंकप्रभा में भवधारणाय के बासठ धनुष और दो हाथ की उत्तरवेउब्विया पणवीसं धणुस ) उत्तर वैक्रिय एक सौ पच्चीस धनुष की (धूमप्पभाए भवधारणिजा पणवीसं घणुस ) धूमप्रभा में भवधारणीय एक सौ पच्चीस धनुष (उत्तर वेडविया अड्डाहलाई धणुसयाई) उत्तर वैक्रिय अढाई सौ धनुष (तमाए भवधारपिज्जा अड्ढाइजाई धणुसयाई) तमःप्रभा में अढाई सौ धनुष की (उत्तर वेउविया पंचधणुसवाई) उत्तर वैक्रिय पांच सौ धनुष की (अहेसत्तमाए भवधारणिज्जा पंच धणुसयाई) सातवीं पृथ्वी में भवधारणीय पांच सौ धनुष की (उत्तर विया धणुसहस्सं) उत्तर वैक्रिय एक हजार धनुष की ( एवं उक्को सेणं) इस प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना है (जहण्णेगं भवधारणिजा अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं ) जघन्य भवधारणीय अंगुल के असंख्यातवें भाग (उत्तर वेउब्विया अंगुलस्ल संखेजइ भाग) उत्तर वैक्रिय की जघन्य अवगाहना अंगुल के संख्यातवें भाग) धणूई एक्कारयणी) अवधारणीय मेस्त्रीस धनुष्य मने ये डाथ (उत्तरवेउन्त्रिया छावहिं घणूई दोरणीओ) उत्तरवै छास धनुष याने मे हाथ (पंकप्पभाए भवधारणिज्जा बावहिं धणूई दो रयणीओ) पंप्रलाभां भवधारराष्ट्रीयनी मास धनुषाने मे हाथनी (उत्तरवेउब्जिए पणवीस धणुसयं) उत्तरवैदियोसो अथीस धनुषनी (धूमप्पभाए भवधारणिज्जा पणवीस घणूस ) धूमप्रभा अवधारणीय सेहो पयीस धनुष (उत्तरवेउब्विया अड्ढाइज्जाई धणुसयाई) उत्तरवैडिय मढीसेो धनुष (तमाए भवधार पिज्जा अड्ढा इज्जाई धणुसयाई) तमःपलामां मढीसेो धनुषनी (उत्तर वे उब्विया पंच धनुस - याई) उत्तरवैयि पांयसेो धनुषनी (अहे सत्तमाए भत्रधारणिज्जा पंच धणुसयाई) सातभी पृथिवीभां अवधारणीय पांयसेो धनुषयनी (उत्तरवे उब्विया धणुसहस्स) उत्तरवैदियो उन्नर धनुषनी ( एवं उक्कोसेणं) मे रीते उत्हृष्ट अवगाहना छे (जहणं भवधारणिज्जा अंगुलरस असंखेज्जइभागं ) ४धन्य अवधारणीय मंगुवने। यस यातला (उत्तरवेठिया अंगुलस्स स खेज्जइभागं ) उत्तरखेडियनी धन्य अवगाहना अनुमती सभ्यातभोलाग. श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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