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प्रबोधिनी ढोका पद २१ ० ६ वैकियशरीरसंस्थाननिरूपगन्
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लस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन पञ्चदशधपि सार्द्धद्वयं रत्नयः, शर्कराप्रमायाः पृच्छा, गौतम ! यावत्, तत्र खलु याऽसौ भवधारणीया सा जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन पञ्चदशधनूंपि सार्द्धद्वयम् जघन्येन रत्नयः, शर्कराप्रमायाः पृच्छा, गौतम ! यावत्, तत्र खलु याऽसौ भवधारणीया सा जघन्येन अङ्गुलस्यासंख्येयभागम्, उत्कृष्टेन पञ्चदश धनूंषि सार्द्धद्वयं रत्नयः, तत्र खलु याऽसौ उत्तरवैक्रिया सा जघन्येन अङ्गुलस्य संख्येयभागम्, उत्कृष्टेन एकत्रिंशद् धनूंषि एका च रत्निः, वालुकाप्रभायाः पृच्छा, भवधारणीया जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जइ भागं ) वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है उक्कोसेणं सत्तणू तिणि रयणीओ छच्च अंगुलाई ) उत्कृष्ट सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल की है (तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया) उनमें जो उत्तरवैक्रिय अवगाहना है (सा जहण्णेणं अंगुलस्त संखेज्जइभागं ) वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग ( उक्कोसेणं पण्णरस घणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ) उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष अढाई अंगुल की है।
( सक्करपभाए पुच्छा ?) शर्कराप्रभा में पृच्छा ? (गोयमा ! जाव तत्थ र्ण जासा भवधारणिज्जा) यावत् उनमें जो भवधारणीय है (सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग) वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग ( उक्कोसेणं पण्णरस
णू अड्ढाइज्जाओ रयणीओ) उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष और अढाई हाथ की (तत्थ णं जा सा उत्तर वेव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइ भागं ) उसमें जो उत्तर 'वैक्रिय अवगाहना है वह जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग है (उक्को सेणं एकतीसं घणूई एक्का य रयणी) उत्कृष्ट एकतीस धनुष और एक हाथ की है ।
(वालुयप्पभाए पुच्छा ?) वालुका प्रभा पृथ्वी के विषय में पृच्छा ? (भव अहारे अवधारणीय भने उत्तरपैडिय (तत्थं जा सा भवधारणिज्जा) तेमां ने लवधारणीय छे (सा जहण्णेणं अंगुलस्स अस खेज्जइभागं ) ते ४न्य अंगुसन असभ्यात भोभाग (उक्कोसेणं सत्तणू तिणि रयणीओ छच्च अंगुलाई) उष्ट सात धनुष, भागु हाथ रमने छ यांगजनी छे (तत्थणं जासा उत्तरवेउब्विया) तेमां उत्तरवैडिया अवगाहना छे (सा जहणेणं अंगुलस्स संखेज्नइभाग) ते भवन्य संगुझनो संख्यात भोभाग ( उक्कोसेणं पण्णरसधणू अढाइज्जाओ रयणीओ) उत्कृष्ट ४२ धनुष भने मढी संगुनी छे.
( सक्करपभाए पुच्छा ?) शश अलाभां पृहा ? (गोयमा ! जाव तत्थणं जासा भवधारणिज्जा) यावत् तेमां ने लवधारणीय छे (सा जहणणेणं अंगुलस्स अस खेज्जइभाग) ते अगुसन। असभ्यातभोलण ( उक्कोसेणं पण्णरस धणूई अड्ढाइज्जाओ रयणीओ) उत्कृष्ट थंडर धनुष अने अढी हाथनी (तत्थणं जासा उत्तरवेउव्त्रिया सा जहणणेणं अंगुलरस संखेउजइभाग) तेमां ने उत्तरवैडिय अवगाहुना छे ते धन्य अंगुझनो सभ्यात भोलाग छे (कोसे एकतीस धई एक्काय रयणी) हृष्ट उत्रीस धनुष आने से हाथनी छे.
(वालुभाए पुच्छा) वालुअगला पृथ्वीना विषयभां पृच्छा ? (भवधारणिज्जा एकतीस '
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४