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________________ ६७४ प्रज्ञापनासत्रे काथ, यैकेयका नवविधाः, अनुत्तरोपपातिकाः पञ्चविधाः, एतेषां पर्याप्तापर्याप्ता मिला पेन द्विगतो भेदो भणितव्यः ।। सू० ४ ॥ टीका - पूर्वमौदारिकशरीरस्य भेदाः संस्थानानि परिमाणानि च प्ररूपितानि, सम्प्रति वैक्रियशरीरस्य भेदादिकं प्ररूपयितुमाह- 'वेउव्जियसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?" हे भदन्त ! वैक्रियशरीरं खलु कतिविधं प्रज्ञतम् ? भगवानाह - 'गोयमा ! 'दुविहे पण्णत्ते' वैक्रिशरीरं द्विविधं प्रज्ञप्तम्, 'तं जहा - एगिंदियवे उब्वियसरीरे य पंचिंदिय चेउव्वियसरीरे य' तद्यथा-एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरश्च षञ्चन्द्रियवै क्रियशरीरश्च, गौतमः पृच्छति - 'जइ एगिंदिय asareet fi वाक्काइय एगिदिय वेडव्वियसरीरे, अवाउकाइय एगिंदिय वेउब्वियसरीरे ?' हे भदन्त ! यदि एकेन्द्रियवै क्रियशरीरं भवति तत् किं वायुकायिकै केन्द्रियवैक्रिय(गेवेज्जगा नवविहा) ग्रैवेयकों के देव नौ प्रकार के हैं (अणुत्तरोववाइया पंचविहा) अनुत्तरौपपातिक पांच प्रकार के हैं (एतेसिं पज्जत्तापज्जन्त्ताभिलावेणं दुगओ भेदो) इन के पर्यास-अपर्याप्त के अभिलाप से दो-दो भेद (भाणियव्यो) कहना चाहिए। टीकार्थ - इससे पूर्व औदारिकशरीर के भेदों, संस्थानों और परिमाणों का निरूपण किया गया है, अब वैक्रिय शरीर के भेदों आदि की प्ररूपणा की जाती है। गौतमस्वामी - हे भगवन् ! वैक्रियशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? भगवान् - हे गौतम ! वैक्रियशरीर दो प्रकार का कहा गया है । वह इस प्रकार है- एकेन्द्रिय वैकियशरीर और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर अर्थात् एकेन्द्रिय जीवों में पाया जाने वाला और पंचेन्द्रिय जीवों में पाया जाने वाला वैक्रियशरीर गौतमस्वामी - हे भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय वैकियशरीर होता है तो क्या वायुकायिक एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है अथवा अवायुकायिकों काभ्याने अनुत्तरोपपाति (गेवेज्जगा नवविहा) पेय सेना हेवे। नव प्रहारना छे (अणुत्तरोवबाइया पंचविहा) अनुत्तरौपयाति पांच अारना छे (पतेर्सि पज्जत्तापज्जत्ताभिलावेणं दुगओ भेदो) तेभना पर्याप्त-अपर्याप्त अलिसाथी मे मे लेह (भाणियन्त्रो) दालेायो. ટીકામના પૂર્વે ઔદારિકશરીરના ભેદો સ ંસ્થાના અને પરિમાણનુ નિરૂપણ કરાયુ.. હવે વૈક્રિયશરીરના ભેદો આદિની પ્રરૂપણા કરાય છે— શ્રી ગૌતમસ્વામી મ્હે ભગવન્! વૈક્રિયશરીર કેટલા પ્રકારના કહેલાં છે? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ ! વૈક્રિયશરીર એ પ્રકારના કહેલાં છે, તે આ પ્રકારે છે. એકેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર અને પંચેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર અર્થાત્ એકેન્દ્રિય જીવેામાં મળી આવતાં અને પાંચેન્દ્રિય જીવામાં મળી આવનારાં વૈક્રિયશરીર, શ્રી ગૌતમસ્વામી—હે ભગવન્ ! યદિ એકેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર હોય છે તે શુ' વાયુકાયિક અકેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીર હેાય છે અથવા અવાયુકાયિકાના ર્થાત્ વાયુકાયિકાથી ભિન્ન પૃથ્વીકાયિક આદિના श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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