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प्रबोधिनी टीका पद २१ सू० ४ वैक्रियशरीरभेदनिरूपणम्
ફર
वगा बारसविहा, ते पि एवं चैव दुहओ भेदो, कप्पातीता दुविहा गेवेज्जगा य अणुत्तरोववाइया य, गेवेज्जगा णवविधा, अणुत्तरोववाइया पंचविहा, एएस पज्जतापजताभिलावेणं दुहओ भेदो भाणियवो ॥सू. ४॥
छाया - वैक्रियशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाएकेन्द्रिय वै क्रियशरीरश्च पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरश्च, यदि एकेन्द्रियवैपिशरीरं किं वायुकायिकेन्द्रियक्रियशरीरम् अवायुकायिकै केन्द्रियवै क्रियशरीरम् ? गौतम ! वायुकायिकै केन्द्रियवैक्रियशरीरम्, नो अब युकारि कैकेन्द्रियशरीरम्, यदि वायुकायिकवै क्रियशरीरं किं सूक्ष्मवायुकायिकवैक्रियशरीरम्, बादरवायुका पिकवैक्रियशरीरम् ? गौतम ! नो सूक्ष्मवायुकायिकै केन्द्रियवैशरीर के भेदों की वक्तव्यता
शब्दार्थ - (वेउव्वयसरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! वैक्रियशरीर : कितने प्रकार का कहा गया है ? ( गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (एगिंदिपवेउच्चियसरीरे य पंचिंदिय येउग्वियसरीरे य) एकेन्द्रिय का वैक्रियशरीर और पंचेन्द्रियका वैक्रियशरीर (जइ एगिंदिय वेडब्बियसरीरे किं वाउक्काइप एगिंदिय बे उच्चि - य सरीरे, अवाक्काइव एगिंदिय वेडव्वियसरीरे ? ) अगर एकेन्द्रिय का वैक्रिय शरीर है तो क्या वायुकायिकों एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर है या अवायुकायिक अर्थात् वायुकायिकों से भिन्न एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है ? (गोयमा ! वाक्काय एगेंदिय वेउच्चियसरीरे नो अवाउक्काइय एगिंदिय वेउब्विय सरीरे) हे गौतम । वायुकायिकों के एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर होता है, अवायुकाधिक एकेन्द्रियों का वैक्रियशरीर नहीं होता ( जइ वाक्काय वेडब्धियसरीरे ) यदि वायुकायिकों का वैक्रियाशरीर होता है (किं सुहुम वाक्काय वेडब्बियसरीरे વેકિયશરીરના ભેદાન વક્તવ્યતા
शद्वार्थ-(वेडव्वियसरीरेण भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! वैट्ठियशरीर डेंटला अाश्ता ह्यां छे ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम! मे अहारना उद्यां छे (तं जहा ) -ते (4) अरे (efire deoreसरीरे य पंचिदिय वेडव्वियसरीरे य) मेहेन्द्रियना वैडियशरीर नेपथेन्द्रियना वैडिशरीर (जइ एगिंदिय बेव्वियसरीरे किं वाउक्काइए एगिंदिय वेउव्जियसरीरे, अवाकाइय एगिंदिय वेडव्वियसरीरे ?) अगर येडेन्द्रियना वैडियशरीर होय तो શુ વાયુકાયિક એકેન્દ્રિયાના વૈકિયશરીર હાય છે અગર અવાયુકાયિક અર્થાત્ વાયુકાયअधी भिन्न येडेन्द्रियोना वैडियशरीर होय छे ? ( गोयमा ! वाउक्काइय एर्गिदिय वेडव्विएसरीरे नो अवाक्काय एनिंदिय वेडब्बियसरीरे) हे गौतम! वायुायिक योडेन्द्रियोना चैम्यिशरीर होय छे, मवायुअयि येडेन्द्रियांना वैडियशरीर नथी होतां (जइ व उक्का इय
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४