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________________ प्रबोधिनी टोका पद १७ सू० ६ मनुष्यलमानाहारादिनिरूपणम् ४९ ते सरागरसंयतास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - प्रमत्तसंयताश्च, अप्रमत्तसंयताश्च तत्र खलु ये ते अप्रमत्तसंयतास्तेषाम् एका मायाप्रत्यया क्रिया क्रियते तत्र खलु ये ते प्रमत्तसंयता स्तेषां द्वे क्रिये क्रियेते आरम्भिकी, मायाप्रत्यया च तत्र खलु ये ते संयतासंयतास्तेषां तिस्रः क्रिया क्रियन्ते, तद्यथा - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययाच, तत्र खलु ये ते असंयतास्तेषां चतस्रः क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्यारूपानक्रिया च तत्र खलु ये ते मिथ्यादृष्टयो ये सम्यग्रमिथ्यादृष्टयस्तेषां नैयतिकाः पञ्चक्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शनप्रत्यया च शेषं यथा नैरयिकाणाम् ॥ ० ६ ॥ संजता) उनमें जो वीतराग संयमी हैं (ते णं अकिरिया) वे क्रियारहित हैं (तत्थ णं जे ते सरागसंजता) उनमें जो सरागसंयमी हैं (ते दुबिहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा - पमन्तसंजता व अपमत्तसंजता य) वे इस प्रकारप्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत (तत्थ णं जे ते अपमत्तसंजया तेसिं एगा मायातिया किरिया कज्जइ) उनमें जो अप्रमत्त संयत हैं उनको एक मायाप्रत्यया किया होती है (तस्थ णं जे ते पमत्तसंजया तेसिं दो किरियाओ कज्जंति) उनमें जो प्रमत्तसंगत हैं उनको दो क्रियाएं होती हैं (आरंभिया मायावन्तिया य) आरंमिकी और मायाप्रत्यया (तत्थ णं जे ते संजयासजघा तेसिं तिन्नि किरियाओ कज्जति) उनमें जो संयतासंयत हैं उनको तीन क्रियाएं होती हैं (तं जहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया) आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया (तत्थ णं जे ते असंजया) उनमें जो असंयमी हैं ( तेसिं चत्तारि किरियाओ कज्जति) उनको चार क्रियाएं होती हैं (तं जहा- आरंभिया, परिगहिया, मायावत्तिया, अपच्चकखाणकिरिया) वे इस प्रकार - आरंभिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यान क्रिया । अकिरिया) तेथे दिया रहित छे (तत्थणं जे ते सरागसंयता) तेखभां ने सराग संयभी छे (ते दुविधा पण्णत्ता) तेथे मे अारना छे ( तं जहा पमत्तसंजता य अपमत्त संजता य) तेथे या प्र४३ - प्रमत्त संयंत ने अप्रमत्त संयंत (तत्थणं जे ते अपमत्त संजया तेर्सिएगा मायावत्तिया किरिया कज्जइ) तेयामां ने अप्रमत्त संयंत छे, तेभनी ४ भाया प्रत्यया दिया थाय छे (तत्थणं जे ते पमत्त संजया तिसिं दो किरियाओ कज्जति) भां प्रमत्त संयंत छे, तेमनी में डियागो थाय छे (आरंभिया मायावन्तिया य) भारं लिडी अने मायाप्रत्यया (तत्थणं जे ते संजयासंजया तेसि तिन्नि किरियाओ कज्जंति) તેએમાં જે સયતા સંયત છે તેમની ત્રણ ક્રિયાએ થાય ( तं जहा- आरंभिया, परिग्गहिया मायावत्तिया) मारमिठी पारिग्रहिठी भाया प्रत्यया (तत्थणं जे ते असंजया) भां असंयमी छे (तेसिं चत्तारि किरियाओ कज्जंति) तेमनी यार डियागो थाय छे (तं -enifer, afmfeur, mulafauı, 3qzatemfakai) a 24 y517-202 (as), પારિગ્રહિકી, માયાપ્રત્યયા, અને અપ્રત્યાખ્યાન ક્રિયા प्र० ७ श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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