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________________ ५९० प्रज्ञापनास्त्रे सरीरे पणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - पजत्तगगन्भवक्कतिय मणूस पंचिंदिय ओरालियसरीरे य, अपज्जत्तगगब्भवतिय मणूसपंचिदिय ओरालियसरीरे य ॥ सू. १ ॥ छाया -कति खलु भदन्त ! शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्चशरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा - औदारिकम् १, वैक्रियम् २, आहारकम् ३, तैजसम् ४, कार्मणम्, ५. औदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा - एकेन्द्रियौदारिकशरीरं यावत् पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरश्च, एकेन्द्रियौदा रिकशरीरं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञतम् ? गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञतम्, तद्यथा- पृथिवीकायिकै केन्द्रियौदारिकशरीरं यावद् वनस्पतिकायिकै केन्द्रियौदारिकशरीरम्, पृथिवी का थिकै केन्द्रियौदारिकशरीरं खलु भदन्त ! कति शरीरभेदवक्तव्यता शब्दार्थ - ( कइ णं भंते ! सरीरया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! कितने शरीर कहे १ ( गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच शरीर कहे हैं (तं जहाओरालिए, वेउच्चिए, आहारए, तेयए कम्मए) वे इस प्रकार - औदारिक बैकियक, आहारक तैजस और कार्मण (ओरालिय सरीरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा- एगिंदिय ओरालियसरीरे जाव पंचिदिय ओरालिय सरीरे) वह इस प्रकार - एकेन्द्रिय औदारिकशरीर यावत् पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर (एगिंदिय ओरालिय सरीरे णं मंते ! कइविहे पण्णत्ते) एकेन्द्रिय औदारिकशरीर हे भगवन् ! कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है (तं जहा पुढविकाइयएगिंदिय ओरालियसरीरे जाव वणશરીર ભેદ વક્તવ્યતા शब्दार्थ - (कइणं भंते! सरीरया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! डेंटलां शरीरना प्रारे ह्यां छे ? (गोयमा ! पंच सरीरया पण्णत्ता) हे गौतम! शरीरना प्रारी पांथ ह्यां छे (तं जहा - ओरालिए, व्विए, आहार, तेयए कम्मए) ने रीते - मडारिए, वैडियङ आहार, तैस अने (ओरालि यसरीरे णं भंते ! कईविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! मौहारि४शरीर डेंटला अहारता ४ह्यां छे ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम! पांथ प्रहारना उद्यां छे (तं जहाefit ओरालिसरीरे जाव पंचिंदिय ओरालियसरीरे ) ते या प्रारे-ोडेन्द्रिय सौहा रिङशरीर यावत् पचेन्द्रिय मोहारिएशरीर (एगिंदिय ओरालियसरीरे णं भंते ! कई विहे पण्णत्ते) मेहेन्द्रिय सौहारशरीर हे लगवन् ! डेटा प्रशरना ह्या छे ? (गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम! पांच अारना उद्यां (तं जहा - पुढ विकाइय एगिंदिय ओरालिय सरीरे श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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