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________________ ५७८ प्रजापनासले उत्कृष्टेन सर्वार्थसिद्ध उत्पादः प्रज्ञप्तः 'विराहियसंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीमु उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे' विराधितसंयमानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन सौधर्मे कल्पे उत्पादः, प्रज्ञप्तः, 'अविराहियसंजमासंजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उकोसेणं अच्चुए कप्पे' अविराधितसंयमासंयमानां जघन्येन सौधर्मे कल्पे, उकृष्टेन अच्युते कल्पे उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'विराहिय संजमासंजमाणं जहण्णेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएस' विराधितसंयमासंयमानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ज्योतिष्केषु उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'असणीण जहणेणं भवणवासीसु उक्कोसेणं वाणमंतरेसु'-असंज्ञिनां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन वानव्यन्तरेषु मध्ये उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'तावसाणं जहण्णणं भवणवासीसु उक्कोसेणं जोइसिएम' तापसानां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ज्योतिप्केषु उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'कंद प्पियाणं जहण्णेणं भवणवासिम उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे' कान्दर्पिकाणां जघन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन सौधर्मे कल्पे उत्पादः प्रक्षप्तः, 'चरगपरिवायगाणं जहणेण भवणवासिसु उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे' चरकपरिव्राजकानां जयन्येन भवनवासिषु उत्कृष्टेन ब्रह्मलोके कल्पे उत्पादः प्रज्ञप्तः, 'किब्बितियाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उक्कोसेणं लंतए कप्पे' किल्बिपिकाणां पापविशेषवतां जघन्येन सौ. की उत्पत्ति जघन्य सौधर्म कल्प में और उत्कृष्ट सर्वार्थसिद्ध कल्प में कही गई है। विराधितसंयमों का उत्पाद जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट सौधर्म नामक कल्प में होता है। जिन्होने अपने संयमासंबम को अर्थातू देश चारित्र को विराधना नहीं की है, उनका जघन्य उत्पाद सौधर्म कल्प में और उत्कृष्ट उत्पाद अच्युत कल्प में कहा गया है। संगमासंयम की विराधना करने वालों का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ज्योतिषको में उत्पाद होता है। असं ज्ञियों का उत्पाद जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट वानव्यन्तरों में होता है। तापमों का उत्पाद जघन्य भवनवासियों में उत्कृष्ट ज्योतिष्कों में कहा गया है। कान्दर्षिको का उत्पाद जघन्य भवनवासियो में, उत्कृष्ट सौधर्म कल्प में उत्पाद होता है। चरक परिव्राजको का जघन्य भवनवासियों में, उत्कृष्ट ब्रह्मलोक में उत्पाद कहा है। किल्बिषिकों का उत्पाद जघन्य सौधर्म कल्प में, उत्कृष्ट लान्तक સૌધર્મ કલ્પમાં અને ઉત્કૃષ્ટ સર્વાર્થસિદ્ધ કલબમાં કહેલ છે. વિરાધિત સંયમે ને ઉત્પાદ જઘન્ય ભવનવાસિમાં, ઉત્કૃષ્ટ સૌધર્મ નામક કપમાં થાય છે. જેઓએ પિતાના સંયમસંયમની અર્થાત્ દેશ ચારિત્રની વિરાધના કરેલી નથી, તેમને ઉત્પાદ જઘન્ય સૌધર્મ કલ્પમાં અને ઉત્કૃષ્ટ ઉત્પાદ અચુત ક૯પમાં કહે છે. સંયમસંયમની વિરાધના કરનારાઓનો જઘન્ય ભવનવાસિયમાં ઉત્કૃષ્ટ જ્યોતિમાં ઉત્પાદ થાય છે. અસંગ્નિને ઉત્પાદ જઘન્ય ભવનવાસિમાં, ઉત્કૃષ્ટ વાનવ્યન્તરોમાં થાય છે. તાપસનો ઉત્પાદ જઘન્ય ભવનવાસિયમાં, ઉત્કૃષ્ટ તિબ્દોમાં કહેવાયેલ છે. કાન્દપિકોના જઘન્ય ભવનવાસિયોમાં, ઉત્કૃષ્ટ સૌધર્મ ક૫માં ઉત્પાદ થાય છે. ચરક પરિવ્રાજકોને જઘન્ય ભવનવાસમાં, श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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