SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १४ सू. ८ चक्रवर्तित्वोत्पादनिरूपणम् __ ५६३ प्रभानैरयिकोऽनन्तरमुवृत्त्य चक्रवर्तित्वं लभेत ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, एवं यावत् अधः सप्तमपृथिबी नैरयिकः, तिर्यङ्मनुष्येभ्यः पृच्छा, गौतम ! नायमर्थः समयः, भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिष्कवैमानिकेभ्यः पृच्छा, गौतम ! अस्त्येको लभेत, अस्त्ये को नो लभेत, एवं बलदेवत्वमपि, नवरं शर्कराप्रभापृथिवी नैरयिकोऽपि, लभेत, एवं वासुदेवत्वं द्वाभ्यां पृथिव्यां वैमानिकेभ्यश्च अनुत्तरौपपातिकवर्जेभ्यः, शेषेषु नायमर्थः समर्थः, माण्डलिकत्वम् का नारक अनन्तर उद्वर्तन करके चक्रवर्तीपन पाता है ? (गोयमा ! णो इणढे समटे हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (एवं जाव अहेसत्तमा पुढवि नेरइए) इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी पृथ्वी का नारक के विषय में भी जान लेवें । ____ (तिरियमणुएहिंतो पुच्छा ?) तिर्यंच और मनुष्यों के संबंध में पृच्छा ? (गोयमा ! णो इणढे समठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (भवणपतिवाण मंतर जोइसियवेमाणिएहितो पुच्छा ?) भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों से-पृच्छा ? (गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेगइए णो लभेज्जा) हे गौतम! कोई प्राप्त करता है, कोई नहीं प्राप्त करता (बलदेवत्तंपि) बलदेवपन भी (नवरं सकरप्पभापुढवि नेरइए वि ल भेज्जा) विशेष शर्कराप्रभा पृथ्वी का नारक भी प्राप्त करता है। (एवं वासुदेवत्तं) इसी प्रकार वासुदेवपन (दोहितो पुढवीहितो) दो पृथिवियों से (वेमाणिएहितो य अणुत्तरोषवाइयवज्जेहिंतो) अनुत्तरोपपातिक देवों को छोड कर वैमानिकों से भी वासुदेवत्व प्राप्त हो सकता है( सेसेसु णो इण टूटे समठे) शेषों में यह अर्थ समर्थ नहीं (मंडलियत्तं अहेसत्तम। तेउ वाउवज्जे. हिंतो) माण्डलिकपन सातवीं पृथ्वी, तेजस्काय, वायुकाय को छोड कर हत ४२ यती पशु भेज छ ? (गोयमा ! णो इणद्वे समद्वे) 3 गौतम ! मा म समय नयी (एवं जाव अहेसत्तमापुढवि नेरइए) ४ ५४२ यावत् ५५ पृथ्वीना ना२७ (तिरियमणुएहितो पुच्छा ?) तिय य म भनुयायी छ। १ (गोयमा ! णो इणदे सम) 3 गौतम ! २५ मथ समय नथी (भवणपति वाणमंतर जोइसिय माणिएहितो पुच्छा) मनपति पान०य-त२, न्याति ४ भने वैभानिथी २७ ? (गोयमा ! अत्थेगइए लभेज्जा, अत्थेंगइए नो लभेज्जा) गौतम ! 5 प्रात ४२ छ, । प्रान्त नयी ४२ता (बलदेवत्तंपि) मगर ५ ५] (नवरं सक्करप्पभा पुढवि नेरइए वि लभेज्जा) विशेष શર્કરપ્રભા પૃથ્વીના નારક પણ પ્રાપ્ત કરે છે (एवं वासुदेवत्तं) मे ॥२ वासुदेव पा. (दोहितो पुढवि हितो) २ पृथ्वीयाथी (वेमाणिरहितो य अणुत्तरोववाइयवज्जेहिंतो) अनुत्तरी५५ति हेवाने मानियो पर वासुदेवत्व त थ । छ (सेसे सु णो इणट्रे समद्रे) नामां म य समय नयी (मंडलियत्तं अहेसत्तमा तेउवाउवज्जेहिंतो) Hisaxyन सातमी ५५५, ४२४५ वायुयने छीन श्री प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy