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प्रबोधिनी टीका पद १७ सू० ५ पृथ्वीकायिकादीनां समवेदनादिनिरूपणम्
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णं भंते! एवं वुच्चइ - पुढविकाइया सव्वे समवेयणा ? गोयमा ! पुटविकाइया सव्वे असन्नी असन्नीभूयं अणिययं वेयणं वेयंति से तेण - ट्टेणं गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे समवेयणा, पुढविकाइयाणं भंते ! सव्वे समकिरिया ? हंता, गोयमा ! पुढविकाइया सध्ये समकिरिया, सेकेणणं भंते! एवं वच्चइ पुढविकाइया सव्वे समकिरिया ? गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे माइमिच्छादिट्टी तेसिं णियइयाओ पंचकिरियाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावतिया, अप्पच्चक्खाण किरिया, मिच्छादंसणवत्तिया य, से तेणटुणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - पुढविकाइया सव्वे समकिरिया, जाव चउरिंदिया, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया, णवरं किरियाहिं सम्मदिट्टी मिच्छदिट्टी सम्मामिच्छदिट्टी' तत्थणं जे ते सम्मद्दिट्ठी ते दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा - असंजया य, संजया संजया य, तत्थ णं जे ते संजयासंजया तेसिं णं तिन्निकिरीयाओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावतिया, तत्थ णं जे असंजया तेसि णं चत्तारि किरिया कज्जंति तं जहाआरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपञ्चक्खाण किरिया, तत्थ णं जे ते मिच्छादिट्टी जे य सम्मामिच्छाद्दिट्ठी तेसि णं णियइयाओ पंच करि याओ कज्जंति, तं जहा- आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपचखाकिरिया, मिच्छादंसणवत्तिया, सेसं तं चैव ॥सू०५ ॥
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छाया - पृथिवीकायिकाः आहारकर्मवर्ण लेश्याभिर्यथा नैरयिकाः पृथिवीकायिकाः सर्वे समवेदना: ? हन्त, गौतम ! सर्वे समवेदनाः, तत् केनार्थेन एवं मुच्यते - पृथिवी कायिकाः पृथ्वी कायादि की वक्तव्यता
शब्दार्थ - ( पुढविकाइया आहारकम्मवण्णलेस्साहि जहा नेरइया) पृथ्वीका - धिक आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या से नारकों के समान (पुढविकाइया सध्वे समवेधणा ?) क्या सब पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं ? (हंता, गोयमा ! પૃથ્વીકાયાદિની વક્તવ્યતા
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शब्दार्थ - (पुढविकाइया आहार कम्मवण्णलेस्साहिं जहा नेरइया) पृथ्वीश्रयि माहार अर्भ, वर्षा ने बेश्याथी नारौना समान (पुढविकाइया सव्वे समवेयणा ) शुमधा पृथ्वीमाथि समान बेहनावाला छे ? (हंता गोयमा ! सव्वे समवेयणा) हा गौतम | मघा
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४