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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १९ सू० २ एकसमयेऽन्तक्रियाकरणनिरूपणम् ४९७ अपि चत्वारः, वनस्पतिकायिकाः षट् च, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः दश, तिर्यग्योनिक्यो दश, मनुष्या दश, मानुष्यो विंशतिः, वानव्यन्तरा दश, वानव्यन्तर्यः पञ्च, ज्योतिष्का दश ज्योतिष्क्यो विंशतिः, वैमानिका अष्टशतम्, वैमानिक्यो विंशतिः॥ सू० २ ॥ ____टीका-अथ नैरयिकादि भवेभ्योऽनन्तरमागताः कियन्तो नैरयिकादय एकसमयेनान्तक्रियां कुर्वन्ति इत्येवं रूपं तृतीयम् एकसमयद्वारं प्ररूपयितुमाह-'अणंतरागया नेरइया एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरेंति ?' हे भदन्त ! अनन्तरागता:-नैरयिकादिभवेभ्यो मनुष्य भवेऽनन्तरेण-अव्यवधानेन आगताः सन्तो नैरयिका एकसमयेन कियन्तोऽन्तक्रियां प्रकु र्वन्ति ? अत्र 'नैरयिकाः' इति पूर्व प्रवपर्यायेण व्यपदिश्यन्ते स च व्यपदेशो देवादिपूर्वभवइसी प्रकार अपकायिक भी चार (वणस्सइकाइया छच्च) वनस्पतिकायिक छह (पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दस) पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक दश (तिरिक्खजोणि. णीओ दस) तियेचस्त्रियां दश (मणुस्मा दस) मनुष्यदश (मणुस्सीओ वीसं) मनु. पनियां वीस (वाणमंतरा दस) वानव्यन्तर दस (वाणमंतरीओ पंच) वानव्यन्तर: देवियाँ पांच (जोहसिया दस) ज्योतिष्क दश (जोइसिणीओ वीसं) ज्योतिष्कदेवियां वीस (वेमाणिया अट्ठसयं)) वैमानिक एकसौ आठ (वेमाणिणीओ वीसं) वैमानिक देवियां वीस ___टीकार्थ-नारक आदि पर्यायों से सीधे आए हुए अर्थात् अनन्तरागत कितने जीव एक समय में अन्तक्रिया कर सकते हैं, इसका विचार यहां किया जा रहा है यह तीसरा एकसमय द्वार है। गौतमस्वामी-हे भगवन ! अनन्तरागत नारक एक समय में कितने अन्तक्रिया करते हैं ? अर्थात् जो जीव नारक से निकल कर सीधे मनुष्यभव में आए हैं, वे यदि अन्तक्रिया करे तो एक समय में कितने करते हैं ? यहां यह ध्यान या२ (एवं आउकाइया वि चत्तारि) मे ५४३ २०५४४५४ ५५ यार (वणस्सइकाइया छच्च) न२५तिय छ (पंचिदियतिरिक्खजोणिया दस) पयन्द्रियतिय ययानि४ ६श (तिरिक्खजोणिणीओ दस) तिय य स्त्रीया ६० (मणुस्सा दस) मनुष्य ४५ (मणुस्सीओ वीसं) मनुष्यनिया वीस (वाणमंतरा दस) पान०यन्त२ ६श (वाणमंतरीओ पंच) वानव्यन्त२ हविया पाय (जोइसिया दस) च्याति १२ (जोइसिणीओ वीस) ज्योति वियो पीस (वेमाणिया अनुसयं) वैमानिसमा (वैमाणिणीओ वीसं) वैमानिस हेविया वीस. ટીકાથ–નારક આદિ પર્યાથી સીધા આવેલા અર્થાત્ અનરાગત કેટલા જીવ એક સમયમાં અન્તક્રિયા કરી શકે છે, તેને વિચાર અહીં થઈ રહેલો છે, આ ત્રીજું એક સમય દ્વારા શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન! અનન્તરાગત નારક એક સમયમાં કેટલી અન્તક્રિયા કરે છે? અથત જે જીવ નારકથી નિકળીને સીધા મનુષ્ય ભવમાં આવ્યા છે, તેઓ જે અન્તક્રિયા કરે તે એક સમયમાં કેટલા કરે છે? અહીં ધ્યાન રાખવું જોઈએ કે જે જીવ प्र०६३ श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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