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________________ ४९६ प्रशापनास्त्रे चत्वारः, अनन्तरागताः खलु भदन्त ! असुर कुपारा एक समये कियन्तोऽन्तक्रिया प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन दश, अनन्तरागताः खलु भदन्त ! असुरकुमायः एकसमयेन कियतोऽन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! जघन्येन एका वा द्वे वा तिस्रो वा, उत्कृष्टेन पश्च, एवं यथा असुर कुमारा सदेवीका स्तथा यावत् स्तनितकुमारा अपि स देवीकाः, अनन्तरागताः खलु भदन्त ! पृथिवीकायिकाः एकसमये कियन्तोऽन्तक्रियां प्रकुर्वन्ति ? गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन चत्वारः, एवम् अकायिका जघन्य एक दो अथवा तीन (उक्कोसेणं चत्तारि) उत्कृष्ट से चार (अणंतरागया णं भंते ! असुरकुमारा एगसमए केवइआ अंतकिरियं पकरे ति?) हे भगवन् ! अनन्तरागत असुरकुमार एक समय में कितने अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा! जहण्णेणं एको वा दो वा तिमि धा) हे गौतम ! जघन्य, एक, दो अथवा तीन (उकोसेणं दस) उत्कृष्टदश (अणंतरागया णं भंते! असुरकुमारीओ एगसमएणं केवइयाओ अंतकिरियं पकरे ति ?) हे भगवन् ! अनन्तरागत असुरकुमारियां एक समय में कितनी अन्तक्रिया करती हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं एको वा दो वा तिनि का) हे गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन (उक्कोसेणं पंच) उत्कृष्ट पांच (एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणिय. कुमारा वि सदेवीया) इस प्रकार जैसे असुरकुमार देवियों सहित कहे वैसे ही देवियों सहित स्तनितकुमारों तक कहना (अणंतरागया णं भंते ! पुढबिकाइया एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरेति ?) हे भगवन् ! अनन्तरागत पृथ्वीकाधिक एक समय में कितने अन्तक्रिया करते हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिभि वा) गौतम ! जघन्य, एक दो अथवा तीन (उकोसेणं चत्तारि) उत्कृष्ट चार (एवं आउकाइया वि चत्तारि) (अणंतरागयाणं भंते ! असुरकुमारा, एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरें ति) भगवन् ! मनन्तरात मसुरेशुभार ४ समयमा दी सन्तया ४२ छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं एको वा दो वा तिन्नि वा) ॐ गौतम ! धन्य मे४, मे, मात्र (उक्कोसेगं दस) उत्कृष्ट दृश (अणंतरागयाणं भंते ! असुरकुमारीओ एगसमएणं केवइयाओ अंतकिरियं पकरें ति ?) 3 भगवन् ! मनन्तरात असुरमारियो मे४ समयमा उनी सन्तठिया ४२ छ ? (गोयमा ! जहण्णेगं एको वा दो वा तिन्नि वा) गौतम ! ४धन्य से, मे अथवा १९ (उक्कोसेणं पंच) उत्कृष्ट पांय (एवं जहा असुरकुमारा सदेवीया तहा जाव थणियकुमारा वि सदेवीया) से मारे જેવા અસુરકુમાર દેવિ સહિત કહ્યા તેવા જ દેવિ સહિત સ્વનિતકુમાર સુધી કહેવું. (अणंतरागयाणं भते ! पुढ विकाइया एगसमए केवइया अंतकिरियं पकरें ति?) भगवन् ! मनन्तरात वायि४ मे ४ समयमा टसी मन्तयिा ४२ छ ? (गोयमो ! जहणणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा) 3 गौतम ! धन्य मे, मे २५२१॥ वार (उक्कोसेणं चत्तारि) दृष्ट श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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