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________________ ४८४ प्रज्ञापनासूत्रे अन्तक्रियादि वक्तव्यता मूलम्-जीवे णं भंते ! अंतकिरियं करेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगइए णो करेजा, एवं नेरइए जाव वेमाणिए, नेरइए णं भंते ! नेरइएसु अंतकिरियं करेजा ? गोयमा! नो इण? समढे, नेरइया णं भंते ! असुरकुमारेसु अंतकिरियं करेजा ? नो इणटे समटे एवं जाय वेमाणिएसु, नवरं मणूसेसु अंतकिरियं करेजत्ति पुच्छा, गोयमा ! अत्थेगइए करेजा, अत्थेगइए णो करेजा, एवं असुरकुमारा जाव वेमाणिया, एवमेव चउदीसं दंडगा भवंति, नेरइया णं भंते ! किं अणंतरागया अंतकिरियं करेंति ? परंपरागया अंतकिरियं करेंति ? गोयमा ! अणंतरागया वि अंतकिरियं करेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं करेंति, एवं रयणप्पभापुढवि नेरइया वि जाव पंकप्पभापुढवि नेरइया, धूमप्पभा पुढवी नेग्इया णं पुच्छा, गोयमा ! णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति, एवं जाव अहेसत्तमापुढवि नेरइया, असुरकुमारा जाव थणियकुमारा, पुढवी आउवणस्सइकाइया य अणंतरागथा वि अंतकिरियं पकरेंति परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, तेउ वा बेइंदियतेइंदिय चउरिदिया णो अणंतरागया अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया अंतकिरियं पकरेंति, सेसा अणंतरागया वि अंतकिरियं पकरेंति, परंपरागया वि अंतकिरियं पकरेंति ॥सू० १॥ __छाया-जीवः खलु भदन्त ! अन्तकियां कुर्यात् ? गौतम ! अस्त्येकः कुर्यात्, अस्त्येको न कुर्यात्, एवं नैरयिको यावद् वैमानिकः, नेरयिकः खलु भदन्त ! नैरयिकेषु अन्तक्रियां से आए हुए एक समय में कितने अन्तक्रिया करते है ? वहां से उवृत्त होकर किस योनि में उत्पन्न होते हैं, यह व्याख्यात किया जाएगा। फिर वहां से उद्वृत्त हुए अर्थातू उबरे हुए जीव तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, माण्डलिक अर्थात् एक, प्रान्त के अधिपति, अथवा चक्रवर्ती के रत्न-सेनापति आदि होते हैं, यह निरूपण किया जाएगा। यह द्वारगाथा का संक्षेप में अभिप्राय है।। એ વ્યાખ્યા ન કરાશે પછી ત્યાંથી ઉંદુવૃત્ત થયા અર્થાત્ ઉદ્વર્તન પામેલ જીવ તીર્થકર, ચક્રવર્તી, બલદેવ, વાસુદેવ, માંડલિક અર્થાત એક પ્રાન્ત અધિપતિ અથવા ચક્રવર્તીના ૨ન-સેનાપતિ આદિ થાય છે, એ નિરૂપણ કરાશે આ દ્વાર ગાથાને સંક્ષેપમાં અભિપ્રાય છે. श्री प्रापन सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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