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प्रज्ञापनासूत्र टीया-अष्टादशपदे कायस्थिति प्ररूपणं कृतम्, अथैकोनविंशतितमे पदे सम्यक्त्वं प्ररूपयितुं कस्यां कायस्थितौ सम्यग्दृष्टयादिभेदेन कतिविधा जीवा भवन्तीति प्ररूप्यते'जीवाणं भंते ! किं सम्मदिट्टी, मिच्छादिद्री, सम्मामिच्छादिट्टी?' गौतमः पृच्छति-'हे भदन्त ! जीवाः खलु किं सम्यग्दृष्टयो भवन्ति ? किं वा मिथ्यादृष्टयो भवन्ति ? सम्यडमिथ्यादृष्टयो वा किं भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जीवा सम्मादिट्टीवि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिही वि' जीवाः सम्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति, एवं मिथ्यादृष्ट(सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्टी वि) सम्यग्दृष्टि भी, मिथ्याटि भी, सम्यग्मियादृष्टि भी होते हैं।
(सिद्धा णं पुच्छा ?) सिद्ध विषयक-प्रश्न ? (गोयमा ! सिद्धा सम्मदिट्टी) हे गौतम ! सिद्ध सम्यग्दृष्टि हैं (णो मिच्छादिट्ठी) मिथ्यादृष्टि नहीं (णो सम्मामिच्छादिट्ठी) सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी नहीं।
सम्यक्त्यपद समाप्त टीकार्थ-पिछले अठारहवें पद में कायस्थितिका निरूपण किया गया है, प्रस्तुत उन्नीसवें पद में सम्यक्त्व की प्ररूपणा करने के लिए कायस्थिति में सम्यग्दृष्टि आदि के भेद से कितने प्रकार के जीव होते हैं, यह कहते हैं। अर्थात् इस पद में यह दिखलाया जाता है कि चौवीस दंडकों के जीवों में से किस-किस में कौन-कौन सी दृष्टि पाई जाती हैं ?
गौतमस्वामी पहले सामान्य जीवों के विषय में प्रश्न करते हैं-हे भगवन् जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते हैं ? अथवा मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या सम्य. ग्मिथ्यादृष्टि होते हैं ?
भगवान्-हे गौतम ! जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं मियादृष्टि भी होते हैं ज्योति०४ मन वैमानि४ (सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, सम्मामिच्छादिट्ठी वि) सभ्यष्टि પણ, મિથ્યાષ્ટિ પણ, સમ્યમિથ્યાદષ્ટિ પણ હોય છે.
(सिद्धाणं पुच्छा ?) सिद्ध विष-प्रश्न ? (गोयमा ! सिद्धा सम्मदिवी) गौतम ! सिद्ध सभ्यष्टि छ (णो मिच्छादिट्ठी) मिथ्याटिनी (णो सम्मामिच्छादिट्टी) सभ्यभिथ्याट ५५ नही
સમ્યકત્વ પદ સમાપ્ત ટીકાથ–પાછલા અઢારમાં પદમાં કાયસ્થિતિનું નિરૂપણ કરાયું છે, પ્રસ્તુત ઓગણીસમાં પદમાં સમ્યકત્વની પ્રરૂપણ કરવાને માટે કાયસ્થિતિમાં સમ્યગ્દષ્ટિ આદિ ભેદથી કેટલા પ્રકારના જીવ હોય છે, એ કહે છે. અર્થાત્ આ પદમાં એ બતાવાય છે કે ચોવીસ દંડકના જીવમાંથી કેના કેનામાં કેવી કેવી દકિટ મળી આવે છે?
શ્રી ગૌતમસ્વામી–પહેલા સામાન્ય જીવના વિષયમાં પ્રશ્ન કરે છે--હે ભગવન્! જીવ શું સમ્યગૃષ્ટિ હોય છે? અથવા મિદષ્ટિ હેય છે ? અગર સમ્યગૂમિશ્ચાદષ્ટિ હેય છે?
श्री. प्रापन। सूत्र:४