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प्रशापनासो हे भदन्त ! नीललेश्यः खलु 'नीललेश्य' इति-नीलले इयत्वपर्यायविशिष्टः सन् कालापेक्षया कियत्कालपर्यन्तं निरन्तरमवतिष्ठते ? इति पृच्छा, भगवानाह-गोयमा !' हे गौतम ! 'जहप्रणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दससागरोवमाई पलिओवमासंखिज्जइ भागमभहियाई' जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन दशसागरोपमाणि पल्योपमासंख्येयभागाभ्यधिकानि यावत् नीललेश्यो नीललेश्यत्वपर्यायविशिष्टः सन् निरन्तरमवतिष्ठते, तथा चात्र पश्चमनरकपृथिव्यपेक्षया पल्योपमासंख्येयभागाभ्यधिकानि दशसागरोपमाणि अवसेयानि, तत्र पञ्चमनरक पृथिव्यां प्रथमप्रस्तटे नीललेश्या संभवति, 'पंचमियाए मीसा' पञ्चम्यां मिश्रा, इति वचनप्रामाण्यात् तस्मिश्च प्रथमप्रस्तटे उत्कृष्टेन उपयुक्तरूपा स्थितिरवसेया, पूर्वोत्तर भवगते अन्तर्मुहूर्ते तु पल्योपमासंख्येयभागे एवान्तभूते इति न पृथग् विवक्षिते, एवमग्रेऽपि बोध्यम्, गौतमः पृच्छति-'काउलेस्सेणं पुच्छा' कापोतलेश्यः खल भदन्त ! कापोतलेश्यत्वपर्याय नीललेश्या वाला बना रहता है ?
भगवान्-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यात वें भाग अधिक दस सागरोपम तक नीललेश्या वाला जीव निरन्तर नीललेश्या वाला रहता है। यहां पांचवीं नरक पृथिवी की अपेक्षा से पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम समझना चाहिए, क्योंकि पांचवें नरक के पहले पाथडे में नीललेश्या होती है, कहा भी है-'पंचमियाए मीसा' अर्थात् पांचवीं भूमि में मिश्र होती है। उस प्रथम पाथडे में उपर्युक्त स्थिति होती है। पूर्वभव और उत्तरभव संबंधी दोनों अन्तर्मुहूर्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग में ही सम्मिलित हो जाते हैं, अतएव उनकी पृथक् विवक्षा नहीं की गई है। आगे भी इसी प्रकार समझलेना चाहिए। गौतमस्वामी-हे भगवन् ! कापोतलेश्या वाला जीव कितने काल तक निरन्तर
શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! નીલેશ્યા વાળા જીવ નિરન્તર કેટલા કાળ સુધી નીલ લેશ્યાવાળા બની રહે છે ?
શ્રીભગવાન -હે ગૌતમ! જઘન્ય અન્તર્મુહૂત સુધી, ઉત્કૃષ્ટ પલ્યોપમ ને અસં. ખ્યાત ભાગ અધિક ક્રશ સાગરોપમ સુધી નીલલેશ્યાવાળા જીવ નિરન્તર નીલેશ્યાવાળા રહે છે. અહીં પાંચમી નરક પૃથ્વીની અપેક્ષાથી પોપમને અસંખ્યાત ભાગ અધિક દશ સાગરોપમ સમજે જોઈએ, કેમકે પાંચમા નરકના પહેલા પાથડમ નીલેશ્યા હોય छ, ४ ५५ छ पंचमियाए मीसा) अर्थात् पां भी भूमिमा भिडाय छे. मा प्रथम પાથડમાં ઉપર્યુક્ત સ્થિતિ હોય છે પૂર્વભવ અને ઉત્તર ભવ સંબધી–બને અન્તર્મુહૂર્ત પોપમના અસંખ્યાતમાં ભાગમાંજ સંમિલિત થઈ જાય છે, તેથી જ તેની પૃથવિવક્ષા કરી નથી. આગળ પણ એજ પ્રકારે સમજી લેવું જોઈએ.
શ્રીગૌતમસ્વામી-હે ભગવન ! કાપતલેશ્યાવાળા કેટલા સમય સુધી નિરન્તર કાપે તો
श्री. प्रशान। सूत्र:४