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प्रमेयबोधिनो टीका पद १८ सू० २ जीवानां सेन्द्रियत्वनिरूपणम् खलु भदन्त ! एकेन्द्रिय इति कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेन अनन्तं कालम् वनस्पतिकालः, द्वीन्द्रियः खलु भदन्त ! द्वीन्द्रिय इति कालत: कियच्चिरं भवति ? गौतम! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम् उत्कृष्टेन संख्येयं कालम, एवं त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियोऽपि, पञ्चेन्द्रियः खलु भदन्त ! पञ्चेन्द्रिय इति कालतः कियश्चिरं भवति ? गौतम! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन सागरोपमसहस्रं सातिरेकम्, अनिन्द्रियः खलु पृच्छा, गौतम ! सादिकः अपर्यवसितः, सेन्द्रियपर्याप्तकः खलु भदन्त ! सेन्द्रियपर्याप्तक इति केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने काल तक एकेन्द्रिय रहता है ?
(गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त, और उत्कृष्ट अनन्त काल (वणस्सइ कालो) वनस्पति काल पर्यन्त एकेन्द्रिय पनेमें रहता है।
(बेइंदिए णं भंते ! बेइंदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! बीन्द्रिय कितने काल तक द्वीन्द्रिय पने में रहता है ? (गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट संख्यात काल (एवं तेइंदिय-चउरिए वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय भी (पंचिदिए गं भंते ! पंचिदिए त्ति काल भो केवच्चिरं होइ ?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय कितने काल तक पंचेन्द्रिय पने में रहता है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्स) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सहस्त्र सागरोपम (साइरेगं) कुछ अधिक - (अणिदिए णं पुच्छा ?) अनिन्द्रिय संबंधी प्रश्न ? (गोयमा साइए अपज्जवसिए) हे गौतम ! सादि अनन्त
(सइंदिय पज्जत्तएणं भंते ! सइंदियपजत्तएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?) हे ४॥ सुधा मेन्द्रिय ५मा २ छ १ (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं) है गौतम ! 14न्य मन्तभुत, अष्ट मन-dia (वणस्सइकालो) पनपति पय-त.
(बेइं दिए णं भंते ! बेइंदिएत्ति कालतो केवच्चिरं होइ) सावन् ! दीन्द्रियाण सुधा न्द्रिय २३ छ १ (गोयमा ! जहण्णे गं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं) 3 गौतम! अन्य मन्तभुत, सभ्याda (एवं तेइंदिय चउरिदिए वि) मेगा प्रहारे त्रीन्द्रिय અને ચાર ઈન્દ્રિય પણ.
(पंचिदिए णं भंते ! पंचिंदिएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) भगवन् ! पन्द्रिय क्षा समय सुधी पथन्द्रिय पामा २3 छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अन्तोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्स) 3 गौतम ! धन्य मन्तभुत, उत्कृष्ट सहखसागराम (साइरेग) is मधि. . (अणिदिएणं पुच्छा ?) भनिन्द्रिय समन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! साइए अपज्जवसिए). ગૌતમ ! સાદિઅનન્ત.
(सइंदिए पज्जत्तएणं भंते ! सइंदियपज्जत्तएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?) 3 साप! प्र०४४
श्री. प्रशान। सूत्र:४