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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १८ अधिकारसंग्रहणम् | ২৩ सुहमसन्नी भवऽथि वरिमेय । एएसि तु पयाणं कायठिई होइ णायव्वा ।।२॥ इति, प्रथयं जीव:-जीवपदमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपणीया १, तदनन्तरम् गतिः-गतिपदमुद्दिश्य कायस्थिति वकच्या२, तत इन्द्रियम्-इन्द्रियपदमधिकृत्य कायस्थितिः प्ररूपणीया३, तदनन्तरम् काय:-कायपदमधिकृत्य कायस्थिति वक्तव्या ४, तदनन्तरम् योगः-योगपदमुद्दिश्य कायस्थि. तिप्ररूपणं कर्तव्यम्५, तदनन्तरम् वेदः-वेदपदमधिकृत्य कायस्थिप्रिरूपणं कर्यम् ६ तदनन्तरम् कषाय:-कषायपदमुदिश्य कायस्थितिनिरूपणं कर्तव्यम् ७, ततो लेश्या-लेश्यापदमधिकृत्य कायस्थितिनिरूपणं कर्तव्यम् ८ । तदनन्तरम् सम्यक्त्यम् सम्यक्त्वपदमधिकृत्य कायस्थिति प्ररूपणं विधेयम् ९, तदनन्तरम् ज्ञानम्-ज्ञानपदमुद्दिश्य कायस्थितिनिरूपणं कार्यम् १०, तदनन्तरम् दर्शनम्-दर्शनपदमधिकृत्य कायस्थितिप्ररूपणं कर्तव्यम् ११, तदनन्तरम् संयत:संयतपदमधिकृत्य कायस्थितिप्ररूपणं कर्तव्यम् १२, तदनन्तरम् उपयोगः-उपयोगपदमधि. की समानता है, अर्थात लेश्या एक प्रकार का परिणाम है और कायस्थिति भी परिणाम ही है। इसमें सप से पहले उन दो गाथाओं का कथन किया जाता है, जिनमें प्रस्तुत पद में निरूपण किये जाने वाले विषयों का संग्रह किया गया है सर्व प्रथम 'जीव' को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा की जाएगी। (१) तदनन्तर गति को कायस्थिति कही जाएगी (२) फिर इन्द्रियपद को लेकर कायस्थिति कही जाएगी (३) तत्पश्चात कायपद को लेकर कायस्थिति कही जाएगी (४) तदनन्तर योगपद को उद्देश्य करके कायस्थिति का कथन किया जाएगा (५) फिर वेद के आधार पर कायस्थिति का प्ररूपण किया जाएगा (६) फिर कषापद को लेकर कायस्थिति की प्ररूपणा होगी (७) फिर लेश्यापद को लेकर कायस्थिति कहेंगे (८) फिर सम्यक्त्व को लेकर कायस्थिति कही जाएगी (९) तस्पश्चात् ज्ञानपद को लेकर कायस्थिति का निरूपण करना है (१.) तदनन्तर दर्शनपद को लेकर कायस्थिति का कथन किया जाएगा (११) तत्पश्चात् संयतपद को એક પ્રકારનું પરિણામ છે અને કાયસ્થિતિ પણ પરિણામ જ છે. તેમાં બધાથી પહેલું તે બને ગાથાઓનું કથન કરાય છે, જેમાં પ્રસ્તુત પદમાં નિરૂપણ કરાતા વિષયોનો સંગ્રહ કરાયેલ છે. સર્વ પ્રથમ ‘જીવને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણ કરાશે. (૧) તદનન્તર ગતિની કાયસ્થિતિ કહેવાશે (૨) પછી ઈન્દ્રિય પદને લઈને કાયસ્થિતિ કહેવાશે (૩) તત્પશ્ચાત કાયપદને લઈને કાયસ્થિતિ કહેવાશે (૪) તદનન્તર ગપદને ઉદ્દેશીને કાયસ્થિતિનું કથન કરાશે (૫) પછી વેદના આધાર પર કાયસ્થિતિનું પ્રરૂપણ કરવામાં આવશે (૬) પછી કષાય પદને લઈને કાયસ્થિતિની પ્રરૂપણ થશે. (૭) પછી લેશ્યા પદને લઈને કાયસ્થિતિ કહીશું (૮) ફરી સમ્યકત્વને લઈને કાયસ્થિતિ કહેવાશે (૯) તત્પશ્ચાત્ જ્ઞાન પદને લઇને કાયસ્થિતિનું નિરૂપણ થશે. (૧૦) તદનાર દર્શન પદને લઈને કાયયિતિનું કથન श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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