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प्रज्ञापनासने एवमुच्यते-नीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावद् भूयो भूयः परिणमति ? गौतम ! आकारभावमात्रया वा स्यात् प्रतिभागभावपात्रया वा स्यात्, नीललेश्या खलु सा, नो खलु सा कापोतलेश्या, तत्रगता अवष्वकते वा, तत् एतेनार्थेन गौतम! एवमुच्यतेनीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावद् भूयो भूयः परिणति, एवं कापोतलेश्या तेजोलेश्यां प्राप्य तेजोलेश्या पदमलेयां प्राप्य पदमलेगा शुक्ललेश्यां प्राप्य, तत् नूनं भदन्त ! शुक्ललेश्या पद्मलेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावत् परिणमति ! हन्त, गौतम ! शुक्ललेश्या तच्चैव, तत् के नार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-शुक्ललेश्या यावद नो परिणमति? गौतम ! आकारभावमात्रया वा स्याद् यावत् शुक्ललेश्या खलु सा, नो खलु पदमलेश्या, लेस्सा काउलेस्सं पप्प) नीललेश्या कापोतलेश्या को प्राप्त-होकर (णो ता रूवत्ताए जाव भुज्जो २ परिणमइ) तद्रूपता से नहीं यावत् बार-बार परिणत होती (एवं काउलेस्सा तेउलेस्सं पप्प) इसी प्रकार कापोतलेश्या तेजोलेश्या को प्राप्त होकर (तेउलेस्सा पहमलेस्सं पप्प) तेजोलेश्या पद्मलेश्या को प्राप्त होकर (पहमलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प) पद्मलेश्या शुश्ललेश्या को प्राप्त होकर __(से नूणं भंते ! सुक्कलेस्सा पहनलेस्सं पप्प) क्या भगवन् ! शुक्ललेश्या पद्मलेश्या को प्रप्त होकर (णो ता रूवत्ताए जाव परिणमइ ?) तदरूपता से नहीं यावत् परिणत होती ? (हंता गोयमा!) हां गौतम ! (सुक्कलेस्सा तं चेव) शु क्ललेश्या इत्यादि वही पूर्ववत् (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ) किस हेतु से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है (सुक्कलेसा जाब णो परिणमइ ?) शुक्ललेश्या यावत् नहीं परिणत होतो ? (गोयमा !) हे गौतम! (आगारभावमायाए वा) छाया मात्र से (जाव) यावत् (सुक्कलेस्साणं सा णो खलु सा पम्हलेस्सा) वास्तव में वह शुक्ललेश्या है, वह पदमलेश्या नहीं (तत्थगया) वहां रही हई (ओसक्कइ) अपसर्पण करती है (से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) हे गौतम ! पप्प) नीलेश्या पातोश्याने प्राप्त ४१२ (णो ता रूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमइ) तद्र५ताथी नही यावत् पार पा२ परित थाय (एवं काउलेस्सा तेउलेरस पप्प) से प्रा॥पोतवेश्या तश्याने 1 25 (तेउलेस्सा पम्हलेस्सं पप्प) तलवेश्या पद्मश्याने प्राप्त थ/२ (पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सं पप्प) ५६ वेश्या शुसवेश्याने प्रत ने. परिणत थती नथी
(से नूणं भंते ! सुक्कलेस्सा पम्हलेसं पप्प) 3 भावन् ! शु शुसवेश्या पदमबेश्याने प्राप्त थर (णो ता रूवत्ताए जाव परिणमइ १) त६३५ताथी नहीं यावत् परिणत थाय ? (हंता गोयमा ! ) 81, गौतम ! (सुक्कलेस्सा तं चेव) शु४३वेश्या त्यात ते पूवत् (से केणदेणं भंते ! एवं वुच्चई) 3 सावन् ! ॥ हेतुथी मेम ४३१५ छ १ (सुक्कलेस्सा जाव णो परिणमइ १) शु४२३श्या यावत् नथी परिणत थती ? (गोयमा!) . गौतम ! (आगारभावमायाए मा) छ।4। भात्री (जाव) यावत (सुकलेरसाणं सा णो खलु सा पहलेरसा) पास्तवमा
श्री. प्रशाना सूत्र:४