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प्रशापनासूत्रे वा जाव सुकलेस्साणं सा णो खल्लु सा पम्हलेस्सा तत्थगया ओसक्का, से तेगटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-जाव णो परिणमइ ॥सू० २२॥
पण्णवणाए भगवईए लेस्सापए पंचभुदेसो समत्तो छाया-कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्त : ? गौतम ! पहलेश्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाकृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या, तन् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया तवर्णतया तदगन्धतया तदासतया तत्स्पर्शतया भूयो भूयः परिणमति ? अनाधिक्यं यथा चतुर्थ उद्देशकस्तथा भणितव्यं यावद् वैडूर्यमणिदृष्टान्त इति, तत् नूनं भदन्त ! कृष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य नो तद्रूपतया यावद् नो तत्स्पर्शतया भूयो भूयः परिणमति ? हन्त,
पंचम उद्देशक शब्दार्थ-(कह णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ?) हे भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही हैं ?) गोयमा! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! छह लेश्याएं कही हैं (तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्ललेस्सा) वे इस प्रकार-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या (से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त हो करके (ता रूवत्ताए ता वन्नत्ताए ता गंधत्ताए ता रसत्ताए ता फासत्ताए) तद्रूपता से, तबर्णता, तदूगंधता, तद्रसता, तत्स्पर्शतासे (भुजोर) वार-वार (परिणमइ) परिणमन करती हैं ? (इत्तो) यहां से (आढतो) आरंभ किया हुआ (जहा चउत्थओ उद्देसओ तहा भाणियचं) जैसा चौथा उद्देशक कहा, वैसा कह लेना चाहिए (जाव वेरुलियमणि दिटुंतो) वैडूर्यमणि के दृष्टान्ततक
(से गृणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो ता रूवत्ताए जव णो ता फासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमइ ?) हे भगवन् ! कृष्णलेश्या नीललेश्या को
यम उद्देश शहाथ-(कइ णं भंते ! लेस्साओ पण्णत्ताओ!) 3 भावन् ! श्या। टसी ही छ ? (गोयमा ! छ लेस्साओ पण्णत्ताओ) 3 गौतम छ वेश्यामा ४९सी छ (तं अहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा) ते ॥ ४॥२-४ोश्या यावत् शुसवेश्या (से नूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) लगवन् !
शु श्या नीसवेश्याने प्रात (ता रूवत्ताए ता पन्नताए, ता गंधत्ताए, ता रसत्ताए ता फासत्ताए) तद्रूपताथी, तवत, तायता, तरसता, तस्पताथी (मुज्जो भुज्जो) १२ १।२ (परिणमइ) परिमन ४२ छ ? (इत्तो) माडी था (आढत्तो) आम ४२ (जहा चउत्थओ उद्देसओ तहा भाणियव्व) व याथा उद्देश ४ह्यो, तर सापांयी दश ४ी वान (जाव वेरुलियमणिदिटुंतो) वैडूय मलिनाष्टान्त सुधी.
(से णूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प णो ता रूवत्ताए जाव णो ता फासत्ताए भुजोभज्जो परिणमइ १) मावन् ! वेश्या नसतश्याने पाभीन तद्र५तायी यावत् त२५.
श्री. प्रापन। सूत्र:४