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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद १७ २० २१ लेश्यास्थाननिरूपणम् २८१ यगुणानि, एवं कृष्णतेजः-पद्मलेश्यास्थानानि उत्कृष्टानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, उत्कृष्टानि शुक्ललेश्यास्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि, उत्कृष्टेभ्यः शुक्ललेश्या, स्थानेभ्यो द्रव्याथिकेभ्यो जघन्यानि कापोतलेश्यास्थानानि प्रदेशार्थतया अनन्तगुणानि, जघन्यानि नीललेश्यास्थानानि प्रदेशार्यतया असंख्येगुणानि, एवं कृष्णतेजः पद्मलेश्यास्थानानि जघन्यानि प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणानि, जघन्यानि, शुक्ललेश्यास्थानानि असंख्येय. गुणानि, जघन्येभ्यः शुक्ललेश्यास्थानेभ्यः प्रदेशायिकेभ्यः उत्कृष्टानि कापोतलेश्यास्थानानि सा नीललेस्साठाणा दवट्ठयाए असंखेजगुणा) उत्कृष्ट नीललेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (एवं कण्ह तेउपह्मलेस्साठाणेहितो उक्कोसगा सुक्कलेस्सठाणा चट्ठयाए असंखेज्जगुणा) इसी प्रकार कृष्ण, तेज, पालेश्या के स्थानों से उत्कृष्ट शुक्ललेश्या के स्थान द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (उक्कोसएहितो सुक्कलेस्साठाणेहिंतो दवट्टयाए जहन्नगा काउलेस्साठाणा पएसट्टयाए अणंतगुणा) द्रव्य की अपेक्षा शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थानों से प्रदेशों की अपेक्षा कापोतलेश्या के जघन्य स्थान अनन्तगुणा हैं (जहन्नगा नील लेस्साठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) नीललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा असंस्यातगुणा हैं (एवं कण्ह तेउपमलेस्साठाणेहिंतो जहन्नगा सुक्कलेस्सठाणा असंखेज्जगुणा) इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या और पद्मलेश्या के स्थानों से जघन्य शुक्ललेश्या के स्थान असंख्यातगुणा हैं (जहन्नएहितो सुक्कलेस्साठाणेहितो पएसद्वयाए उक्कोसए काउलेस्साठाणा पएसठट्याए असंखेज्जगुणा) प्रदेशों की अपेक्षा जघन्य शुक्ललेश्या स्थानों से प्रदेशों की अपेक्षा उत्कृष्ट कापोतछ (क्कोसा नीललेस्सा ठाणा दव्वयाए असं खेज्जगुणा) उत्कृष्ट नासोश्याना स्थान द्रव्यनी अपेक्षा ५सभ्यात छ (एवं कण्हलेस्सा तेउ पम्हलेस्सा ठाणेहिंतो उक्कोसगा सुक्क. लेस्सा ठाणा दबट्टयाए अस खेज्जगुणा) से प्रारे , ते, पदमवेश्याना स्थानायी Brge शुसेश्याना स्थान ०५नी अपेक्षा अध्यातमा छ (उक्कोसएहि तो सुक्कलेस्सोठाणेहिं तो व्वदयाए जहण्णगा काउलेस्सा ठाणा पएसट्टयाए अणंतगुणा) द्र०यनी અપેક્ષાએ શુકલેશ્યાના ઉત્કૃષ્ટ સ્થાનેથી પ્રદેશની અપેક્ષાએ કાપેતલેશ્યાના જઘન્ય स्थान मन छ. (जहण्णगा नीललेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेजगुणा) नीरसेश्याना જઘન્ય સ્થાન પ્રદેશની અપેક્ષાએ અસંખ્યાતગણુ છે. (एवं कण्हतेउपम्हलेस्सा ठाणेहि तो जहन्नगा सुक्कलेस्सा ठाणा असखेज्जगुणा) मे પ્રકારે કૃષ્ણલેશ્યા, તેજલેશ્યા અને પદ્મશ્યાના સ્થાનેથી જઘન્ય શુકલેશ્યાના સ્થાન अात . (जहण्णएहितो सुक्कलेस्सा ठाणेहिं तो पएसट्टयाए उक्कोसए काउलेस्सा ठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा) प्रशानी अपेक्षाय धन्य शुसवेश्याना स्थानीय प्रशानी अपेक्षा र अपातोश्याना स्थान असभ्याताए। छे (उनकोसा नीललेस्सा ठाणा पए श्री प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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