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________________ २५२ प्रशापनायत्र यत् फलं तस्य रसास्वादइव वा, 'कुडगछल्लीइ वा कुटजत्वक्-कुट जस्य-वृक्षविशेषस्य त्वक्उपरितनवल्कलस्तस्य स्वाद इति वा, 'कुडगफाणिएइ वा कुटजफाणितम्-कुटजस्य फाणितं क्वाथस्तस्य रसास्वादइव वा 'कडुगतुंबी इ वा' कटुकतुम्बी-प्रसिद्धा तस्या आस्वादइव वा 'कडुगतुबीफलेइ वा' कटुकतुम्बीफलमिति वा-कटुकतुम्च्या यत्फलं तस्य रसास्वादइव वा 'खारतउसीइ वा' क्षारत्रपुषी-कटुकत्रपुषी-कटुककर्कटिका तस्या रसास्वाद इति वा 'खार. उसीफलेइ वा' क्षारत्रपुषीफलम्-कटुकत्रपुषीफलम् तस्य रसास्वाद इव वा 'देवदालीइ वा' देवदाली-रोहिणी तस्या रसास्वादइस वा 'देवदाली पुप्फेइ वा देवहालीपुष्पमिति वा-देव. दाल्या रोहिण्या यत् पुष्पं तस्य रसास्वादइव वा 'मियवालुंकी वा' मृगवालकी फलम्-मृगवालुकयाः-वनस्पतिविशेषात्मिकायाः यत्फलं तस्य रसास्वादइव वा, 'घोसाड एइवा' घोपातकीप्रसिद्धा तस्या रसास्वाद इति वा 'घोसाडिफले इ.वा' घोषातकीफलम्-प्रसिद्धाया घोषातक्या यत् फल तस्य रसास्वादइव वा 'कण्हकंदएइ वा कृष्णकन्दो नाम अनन्तकाय वनस्पतिविशेषः तस्य रसास्वाद इव वा, 'वजकंदएइ वा वज्रकन्द इति वा-वज्रकन्दो नाम अनन्तकाय वनस्पति विशेषस्तस्य रसास्वादइव वा कृष्णलेश्या आस्वादेन प्रज्ञप्ता, भगवता एतावति प्रतिपारस के समान, कुटज के फल के रस के समान, कुटज की छाल के रस के समान, कुटज के क्वाथ के रस के समान, अथवा कटुक तू बी के रस के समान, कटुक तुंबीफल के समान, कटुक ककडी के रस के समान, कटुक ककडीफल के रस के समान, देवदाली अर्थात् रोहिणी के रस के समान, देवदाली के पुष्प के रस के समान, मूगबालुंकी नामक वनस्पति के रस के समान, मृगबालुंकी के फल के रस के समान, कटुक तोरईफल के रस के समान, तोरई फल के रस के समान कृष्णकन्द नामक अनन्तकाय वनस्पति के रस के समान, अथवा वज्रकन्द नामक अनन्तकाय वनस्पति के रस के समान कृष्णलेश्या का रस कहा गया है । भगवान के द्वारा इतना प्रतिपादन करने पर गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या इसी प्रकार के रस वाली होती है ? કવાથના રસની સમાન અથવા કડવી તુંબડીના રસની સમાન, કડવા તુંબી ફળની સમાન, કડવી કાકડીના રસની સમાન, કડવી કાકડીના ફળના રસની સમાન, દેવદાલી અર્થાત હિણુના રસની સમાન, દેવદાલીના પુષ્પના રસની સમાન, મૃગવાલંકી નામની વનસ્પતિને રસની સમાન મૃગવાલંકીના ફળના રસની સમાન, કડવા (તુરીયા)ના રસની સમાન, તેરાઈ ફળના રસની સમાન, કૃષ્ણકન્દ નામના અનન્તકાય વનસ્પતિના રસની સમાન અથવા વજકન્દ નામના અનન્ત કાય વનસ્પતિના સમાન કૃષ્ણલેશ્યાને રસ કહે છે. શ્રી ભગવાન દ્વારા એટલું પ્રતિપાદન કરતાં શ્રી ગૌતમસ્વામી પુનઃ પ્રશ્ન કરે છેહે ભગવનું શું કૃષ્ણલેશ્યા એવા પ્રકારના રસવાળી હોય છે? श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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