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________________ प्रमेयपोधिनी टीका पद १७ सू० १८ रसपरिणामनिरूपणम् २४९ चन्द्रप्रभा इति वा मणी शिला इति वा वरसीधु इति वा वरवारुणी इति वा पत्रासव इति वा पुष्पासव इति वा फलासव इति वा चोयासव इति वा आसव इति वा मधु इति वा मेरेय इति वा कापिशायनमिति वा खजूरसार इति वा मृद्वीकासार इति का सुपक्वेक्षुरस इति का अष्टपिष्टनिष्ठिता इति वा जम्बूफलकालिक इति वा वरप्रसन्ना इति वा मांसलापेशला ईषदोष्ठावलम्बिनी ईषदव्यवच्छेदकटुका ईषत्ताम्राक्षिकरणी उत्कर्षमदप्राप्ता वर्णेन उपेता यावत् स्पर्शन आस्वादनीया विस्वादनीया प्रीणनीया बृहणीया दीपनीया दर्पणीया मदनीया सर्वेन्द्रिय उत्तम सीधु नामक मद्य (वर वारुणीइं वा) उत्तम वारुणी (पत्तासवेइ वा) पत्तो का आसव (पुप्फासवेइ वा) पुष्पासव (फलासवेइ वा) या फलोंका आसव (चोयासवेइ वा) चोय का आसय (आसवेइ चा) आसय (महूह वा मेरएइ वा (कविसाणएइ वा) मधु, मैरेयक या कपिशायन नामक मद्य (खज्जूरसारएइ चा) खजूर-सार (मुद्दियासारएइ वा) द्राक्षाका सार (सुपक्कखोतरसेइ वा) अच्छी तरह पके इक्षुरस (अपिट्टणिहिया) अष्ट पिष्ठ निष्ठिता-आठ पिष्टो से बनी वस्तु विशेष (जंघुफलकालियाइ वा) जंबूफलकालिका (वरप्पसन्नाइ वा) उत्तम प्रसन्ना नामक मद्य मंसला रस से भरपूर (पेसला) रमणिय (इसिं) थोडी (ओट्टबलंबिणी) ओष्ठावलम्बिनी-मुख को मधुर करने वाली (ईसि वोच्छेदकडुई) थोडी बाद में कटुक (ईसिं तंबच्छिकरणी) नेत्रों को थोडा ताम्रवर्ण बनाने वाली (उक्कोसमदपत्ता) उत्कृष्ट मद को प्राप्त (वण्णेणं उववेया जाव फासेणं) वर्ण से यावत् स्पर्श से युक्त (आसायणिज्जा) आस्वादन करने योग्य (वीसायणिज्जा) विशेष रूप से आस्वादनीय (पीणणिज्जा) तृप्तिजनक (बिहणिज्जा) वृद्धिकारिणी (दीवणिज्जा) दीपन करनेवाली (दप्पणिज्जा) दर्पजनक (मयणिज्जा) मदकारिणी (वरसीधूइ वा) उत्तम साधु नामनु भय (वरवारुणीइ वा) उत्तम ३ (पत्तासवेइ वा) पाननी मास (पुप्फासवेइ वा) yासव (फलासवेइ वा) ॥२ ३णाना मास (चोयासवेइ वा) यायन। आसप (आसवेइ वा) मास५ (महूइ वा मेरएइ वा) मधु, भे२४ मार (कविसाणएइ वा) पियन नभनु मध (खज्जुरसारएइ वा) मनुर-सार (मुहियासारएइ वा) द्राक्षाना सा२ (सुपक्कखोतरसेइ वा) सारी शत पास सेना २४ (अट्टपिट्टणिद्विया) मटापट निsat-248 तन साथी मनेली वस्तु विशेष (जम्बुफलकालियाइ वा) नमुनी सिमा (वरप्पसन्नाइ वा) उत्तम प्रसन्न नामनु भध (मंसला) २सथी म२५२ (पेसला) २भीय (इसि) थोडी (ओट्टवलंबिणी) Aqeमनी भुमने मधुर ३२वावाणी (ईसिं वोच्छेदकडुई) 2 सपा२मा ४९ (ईसिं तंवच्छिकरणी) नेत्राने थोडी ता मनापरी (उक्कोसमदपत्ता) Gre भहने प्रत (वण्णेणं उववेया जाव फासेणं) यथा यापत २५श था युत (आसायणिज्जा) भारपान ४२१॥ योय (वीसायणिज्जा) विशेष ३५थी मास्थानीय (पीणणिज्जा) तुतिन (बिहणिज्जा) ४५°न (मदणिज्जा) भRel प्र०३२ श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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