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प्रज्ञापनास
तिन्दुकानां वा अपक्वानाम् अपरिपाकानां वर्णेन अनुपेतानां गन्धेन अनुपेतानां स्पर्शन अनुपेतानाम् भवेद् एतद्रूपा ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, यावद् इतोऽमनआमरिकाचैव कापोतलेश्या आस्वादेन प्रज्ञप्ता, तेजोलेश्या खलु पृच्छा, गौतम ! तद्यथा नाम आम्राणां वा पक्वानां पर्यायापन्नानां वर्णेन उपेतानां प्रशस्तेन यावत् स्पर्शेन यावद् इतो मन आमतरिकाचैव तेजोलेश्या आस्वादेन प्रज्ञप्ता, पद्मलेश्यायाः पृच्छा, गौतम ! तत् यथानाम याण या) अक्षोटों का (बोराण वा) बोरों का (तिंदुयाण वा) तिन्दुकों का (अपFort) अपक्वों का (अपरिबागाणं) पूरे नहीं पके हुओं का (वण्णेणं अणुववे(या) परिपक्व अवस्था के वर्ण से रहित (गंधेणं अणुववेयाणं) गंध से रहित (फासेणं अणुववेयाणं) स्पर्श से रहित ( भवेएयारूवं) क्या ऐसा होता है ? (गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं (जाय एतो अमणामरिया चैव काउलेस्सा अस्साएणं पण्णत्ता) यावत् इससे भी अधिक अमनाम कापोतलेश्या रस की अपेक्षा कही गई है
( ते उलेस्साणं पुच्छा ?) तेजोलेश्या के रस के विषय में प्रश्न ( से जहा नाम अंबाण वा) जैसे किन्हीं आमों का ( पक्काणं) पक्वों का ( परिवागाणं) पूरे पके हुओं का (वन्नेणं उववेयाणं) वर्ण से युक्त (पसत्थेणं जाव फासेणं) प्रशस्त यावत् स्पर्श से (जाव एत्तो मणामयरिया चेव तेउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता) यावत् इससे भी अधिक मनेाज्ञ तेजोलेश्या आस्वाद से कही है (पम्ह लेस्साए पुच्छा) पद्मश्या संबंधी पृच्छा (गोयमा ! से जहानामए चंदप्यभाइ वा मणसिलाइ वा ) हे गौतम! जैसे कोई चन्द्रप्रभा हो, मणिशिला हो (वरसीधूइ वा ) (बोराण वा) मोरेना (तिदुयाण वा ) तिहुना ( अपक्काणं वा ) व्यपवाना (अपरिवागार्ण) पुरा नहीं पाडेसाना (वण्णेणं अणुववेयाणं) परिपत्र अवस्थाना थी रहित (गंधेण अणुवबेयाणं) गंधथी रहित (फासेणं अणुत्रवेयाणं) स्पर्शथी रहित ( भवेएयारूवे) शुभेवा होय छे? (गोयमा ! जो इट्टे समट्ठे) हे गौतम! आ अर्थ समर्थ नथी (जाव एत्तो अमणामरिया चैव काउलेखा आस्साएणं पण्णत्ता) यावत् तेनाथी पशु अधि अभनाम अयोतલેશ્યા રસની અપેક્ષા કરેલી છે.
(तेउलेस्साणं पुच्छ । १) तेलेबेश्याना रसना विषयमा प्रश्न ( से जहानामए अंबाण वा ) भेवा अर्ध संखाओनी मोना ( पक्काणं) पाउलाना ( परिवागाणं) पुरा पाउसाना (वणेणं उत्रवेयाणं) वर्षाथी युक्त (पसत्थेणं जाव फासेणं) प्रशस्त यावत् स्पर्शथी (जाव तो मणामयरियाचेव तेउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता) यापत् तेनाथी पशु अधि भनाज्ञ તેજલેશ્યા આસ્વાદથી કહી છે.
( पहले स्साए पुच्छा ?) पद्मलेश्या सभ्णन्धी प्रश्न (गोयमा ! से जहा नामए चंदपभा इवा मणसिलाइ वा ) हे गौतम! भेवी अर्ध चन्द्रयला होय ! मनःशिक्षा होय,
श्री प्रज्ञापना सूत्र : ४