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________________ १८८ प्रज्ञापनास्त्रे प्रणिधाय सर्वतः समन्तात् समभिलोकमानो नो बहुकं क्षेत्रं यावत् पश्यति, यावद् इत्वरमेव क्षेत्रं पश्यति, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-कृष्णलेश्यः खलु नैरयिको यावद् इत्वरमेव क्षेत्रं पश्यति, नीलले श्यः खलु भदन्त ! नैरयिकः कृष्णलेश्यं नैरपिकं प्रणिचाय अवधिना सर्वतः समन्तात् समभिलोकमानः समभिलोकमानः कियत् क्षेत्रं जानाति, कियत् क्षेत्रं पश्यति ? गौतम ! बहुतरकं क्षेत्रं जानाति, बहुतरकं क्षेत्रं पश्यति दूरतरक्षेत्रं जानाति दूरतरकोई पुरुष (बहुसमरमणिज्जंसि भूमिभागम्मि ठिच्चा) बिलकुल सम रमणीय भूमिभाग में स्थित होकर (सचओ समंता समभिलोएजा) सय दिशा विदिशाओं में देखे (तएणं से पुरिसे) तत्पश्चात् वह पुरुष (धरणितलगयं पुरिसं पणि. हाय) भूतलगत दूसरे पुरुष की अपेक्षा (सवओ समंता समभिलोएमाणे) सब दिशा-विदिशाओं में देखता हुआ (णो बहुयं खेत्तं जाणइ पासइ) बहुत क्षेत्र को नहीं जानता-देखता (जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ) यावत् अल्प ही क्षेत्र को देखता है (से तेणटेणं गोयमा !) इस कारण से गौतम ! (एवं वुच्चइ) ऐसा कहा जाता है (कण्हलेस्से णं नेरइए जाव इत्तरियमेव खेतं पासइ) यावत् थोडे ही क्षेत्र को जानता है (नीललेस्से णं भंते ! नेरइए) हे भगवन् ! नीललेश्या वाला नारक (कण्हलेस्सं नेरइयं पणिहाय) कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा (ओहिणा सव्वओ समंता) अवधि द्वार सब दिशा-विदिशाओं में (समभिलोए माणे २) देखता हुआ २ (केवइयं खेत्तं जाणा, केवइयं खेतं पासइ) कितने क्षेत्र को जानता है, कितने क्षेत्र को देखता है ? (गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ, बहुतरागं खेत्तं पासइ) गौतम ! बहुत-से क्षेत्र को जानता है, बहुत-से क्षेत्र को देखता है । (दूरतरं खेत्तं जाणह, दूरतरं खेत्तं पासइ) दूरतर क्षेत्र को सभरभणीय भूमि भागमा स्थित 25 (सबओ समता समभिलोएउजा) यी ६विशासोमा हेरे (तएणं से पुरिसे) तत्पश्चात् ते ५३१ (धरणितलगयौं पुरिस पणिहाय) भूतदरत भीत ३षनी अपेक्षा (सब्बओ समता समभिलोएमाणे) मधी विशियामा भी २हेस (गो बहुयं खेत्तं जाणइ पासइ) घर मया क्षेत्रात नथी ततो-हेमात (जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ) यावत् २८५ ०४ क्षेत्राने हेथे छे (से तेणगुणं गोयमा !) मे ४२था उ गौतम ! (एवं वुच्चइ) मा ४३वाय छे (जाव इत्तरियमेव खेत्तं पासइ) यावत् था। न क्षेत्रने तणे छ (नीललेस्सेणं भंते ! नेरइए) 3 भावन् ! नायवेश्यावाणा ना२४ (कण्हलेसं नेरइयौं पणिहाय) सश्या ना२४ी अपेक्षा (ओहिणा सव्वओ समंता) मध वाचा हिशायाम (समभिलोए) हेभी रहेस. (केवइय खेत्तं जाणइ, केवइय खेत्तं पासइ) मा क्षेत्राने त छ. मने टक्षा क्षेत्राने हेमे छ ? (गोयमा! बहुतरार्ग खेत्तं जाणइ, बहुतराग खेत्तं पासइ) 8 गौतम ! घरी क्षेत्राने गये छ, घ घा क्षेत्रीने वे छे (दरतर खेत जाणइ दूरतर खेत्त पासइ) ६२तर क्षेत्रने छ भने ६२२ क्षेत्रने हेमे छ (विति श्री प्रशाना सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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