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________________ प्रमेयधोधिनी टीका पद १७ सू० १२ जीवादि सलेश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् १७५ सेजोलेश्येभ्यः पद्मलेश्या महदिकाः, पद्मलेश्येभ्यः शुक्ललेश्या महर्दिकाः, सर्वाल्पदिका जीवाः कृष्णलेश्याः, सर्वमहर्दिकाः शुक्ललेश्याः, एतेषां खलु भदन्त ! नैरयिकाणां कृष्णश्यानां नीललेश्यानां कापोतलेश्यानाञ्च कतरे कतरेभ्योऽल्पद्धिका या महर्दिका वा ? गौतम ! कृष्णलेश्येभ्यो नीललेश्या महर्टिकाः, नीललेश्येभ्यः कापोतलेश्या महर्दिकाः, मर्याल्पद्धिका नैरयिकाः कृष्णलेश्याः, सर्वमाद्धिका नैरयिकाः कापोतलेश्याः, एतेषां खल भदन्त ! तिर्ययोनिकानां कृष्णलेश्यानां यावत् शुक्ललेश्यानां च कतरे कतरेभ्योऽल्पद्धिका वा, पद्मलेश्यावाले महर्षिक हैं (पम्हलेस्सेहितो सुक्कलेस्सामहड्डिया) पद्मलेश्या वालो से शुक्ललेश्या वाले महाधिक हैं (सबप्पडिया जीवा कण्हलेस्सा) सब से कम ऋद्धि वाले कृष्णलेश्या चाले जीव हैं (सव्व महड्डिया सुक्कलेस्सा) सबसे महधिक शुक्ललेश्या वाले जीव हैं। (एएसिणं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) हे भगवन् ! इन कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या चाले नारकों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पडिया वा महडिया वा ?) अल्प ऋद्धिवाले और महान ऋद्धि वाले हैं ? (गोयमा! कण्हलेस्सेहितो नीललेस्सा महड्रिया) हे गौतम ! कृष्णलेश्या वालों से नीललेश्या वाले महाधिक हैं (नीललेस्सेहितो काउलेस्सा महडिया) नीललेश्या वालों से कापोतलेश्या वाले महर्धिक हैं। (सव्वप्पड़िया नेरइया कण्हलेस्सा) सब से अल्प ऋद्धि वाले नारक कृष्णलेश्या वाले (सव्वमहडिया नेरइया काउलेस्सा) सब से महान् ऋद्धि वाले नारक कापोतलेश्या वाले हैं। (एएसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य) तेरसेश्या भडपिछे (सेउलेस्से हितो पम्हलेस्सा महड्ढिया) :तनश्यावाणामाथी ५मश्या भघि छ (पम्हलेस्सहिंतो सुक्कलेस्सा महडूढिया) पालेश्यामाथी शुसवेश्या मधिर छ (सव्वप्पढिया जीवा कण्हलेस्सा) अयाथी से छ। द्विवाbf. वेश्यावा॥ छ (सव्वमहढिया सुक्कलेस्सा) माथी भडधि शुसवेश्याया। छे. (एएसिणं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेसाणं नीललेस्साणं काउलेस्साण य) ३ मगवान् ! ॥ वेश्या, नासश्या भने पोतोश्या नाभा (कयरे कयरेहितो) अyोनाक्षी (अप्पढिया वा महडूढिया वा ?) अ५ऋद्धिवाणा भने महान् विणा छ ? (गोयमा ! कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा मह ढिया) गौतम ! परसेश्यावापामाथी नारोश्याचा म छे (नीललेरसेहिंतो काउलेस्सा महढिया) नीरसेश्यामाथी पातश्या मEि छ (सव्यपडढिया नेरइया कण्हलेस्सा) मधाथी भ६५द्धिा ना२४ वेश्या छे (सव्वमहढिया नेरइया काउलेस्सा) माथी भडान्द्ध ना२४ पातश्या छ. (एएसिणं भवे ! तिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य) 8 लायन । श्री. प्रशान। सूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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