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________________ प्रज्ञापनासूत्रे तायां खलु योनौ उत्तमपुरुषाः गर्भेऽवक्रामन्ति तद्यथा-अर्हन्तः, चक्रवर्तिनः, बलदेवाः, वासुदेवाः, शङ्खावर्ता खलु योनिः स्त्री रत्नस्य, शवावर्तायां योनौ बहवो जीवाश्चपुद्गलाश्चावक्रमन्ते व्युत्क्रामन्ति, चीयन्ते, उपचीयन्ते, नो चैव खलु निष्पद्यन्ते, वंशीपत्रा खलु योनिः पितृजनस्य, वंशीपत्रायां खलु योनौ पितृजना गर्भेऽवक्रमन्ते, इति प्रज्ञापनायां नवमं योनिपदं समाप्तम् ॥ सू० ४॥ वर्ती (वंसीपत्ता) वंशीपत्रा (कुमुण्णया णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं) कूर्मोन्नता योनि उत्तम पुरुषों की माताओं की होती है । (कुम्मुण्णयाए णं जोणीए) कूर्मो. न्नता योनि में (उत्तमपुरिसा गम्भे वक्कमंति) उत्तम पुरुष गर्भ में जन्म लेते हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार (अरहता) अर्हन्त (चक्कवट्टी) चक्रवर्ती (बलदेवा) बलदेव (वासुदेवा) वासुदेव। (संखावत्ता णं जोणी) शंखवायोनि (इत्थीरयणस्स) स्त्रीरत्न की होती है (संखावत्ताए जोणीए) शंखावर्ता योनि में (बहवे जीवा य पोग्गला य) बहुत जीव और पुद्गल (वक्कमंति) आते हैं (विउक्कमंति) पैदा होते हैं (चयंति) चित होते हैं। (उवचयंति) उपचित होते हैं (नो चेव णं णिप्फज्जति) किन्तु निष्पन्न नहीं होते । (वंसीपत्ता णं जोणी) वंशीपत्रा योनि (पिहु जणस्स) पृथकूजनों की माताओं की होती है (वंसीपत्ताए णं जोणीए) वंशीपत्रा योनि में (पिहु जणे गम्भे वक्कमंति) पृथक् जन गर्भ में आते हैं। इह पण्णवणाए नवमं जोणिपदं समत्तं ॥ प्रज्ञापना में नवम योनिपद समाप्त ॥ णं जोणी उत्तमपुरिसमाऊणं) भनिता यानि उत्तम ५३षानी भातायानी हाय छ (कुम्मण्णयाएणं जोणीए) न्ना यनिमा (उत्तमपुरिसा गब्भे वक्कमंति) उत्तम ५३५ अममा म छ (तं जहा) तेथे। 24। प्र४१२ (अरहता) म त (चक्कवट्टी) यवती (बलदेवा) मस (वासुदेवा) वासुदेव (संखावत्ताणं जोणी) शभापता योनि (इत्थी रयणस्स) स्त्री २लनी हाय छे (संखावत्तोए जोणीए) मा योनिमा (बहवे जीवाय पोग्गलाय) ७१ भने पुस (वकमंति) गावे छ (विउक्कमंति) पेह। थाय छ (चयंति) थाय छ (उवचयत्ति) ७५यित थाय छ (नो चेव णं णिप्फजंति) ५२न्तु निस्पन्न नथी थता (वंसीपत्ता ण जोणी) वशी ५३॥ योनि (पिहुजणस्स) पृथ५ नानी माता-यानी हाय छे (वंसी पत्ताएणं जोणीए) वशी ५त्रा योनिमा (पिहुजणे गम्भे वक्कमंति) पृथ६ - म मां आवे छे इइ पण्णवणाए नवमं जोणिपयं समत्तं પ્રજ્ઞાપનામાં નવમું નિપદ સમાપ્ત છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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