SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 940
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९२४ प्रज्ञापनासूत्रे भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता, अथ नो भवोपपातगतिं प्ररूपयितुं गौतमः पृच्छति-'से किं तं नो भवोववायगती ?' तत्-अथ का सा-कतिविधा, नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह'नो भवोववायगती दुविहा पण्णत्ना' नो भवोपपातगति द्विविधा प्रज्ञप्ता, तत्र नो भवस्तावत् कर्मसम्पर्कसम्पाद्य नैरयिकत्वादि पर्यायरहितो भवव्यतिरिक्तो व्यपदिश्यते स च पुद्गलः सिद्धो वा भवति तदुभयस्यापि उपर्युक्तलक्षण भवातीतत्वात, तस्मिन् नो भवे उपपात:प्रादुर्भावरूप एव गति र्गमनमिति नो भवोपपातगति रिति, तदेव विशदयन्नाह-'तं जहापोग्गलणोभवोववायगती सिद्ध नो भवोक्वायगती' तद्यथा-पुद्गल नो भवोपपातगतिः, सिद्ध नो भवोपपातगतिश्च, तत्र गौतमः पृच्छति- 'से कि तं पोग्गल नो भवोववायगती ?' तत्-अथ का सा-कतिविधा पुद्गल नो भवोपपातगतिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'पोग्गलणो भवोववायगती-जं णं परमाणुपोग्गले लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ पञ्चस्थिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छइ' पुद्गल नो भवोपपानगतिस्तावत्-यत् खलु परमाणु पुद्गल: लोकस्य पूर्वस्मात् चरमान्तात् पश्चिम चरमान्तम् एकसमयेन गच्छति, एवम्-'पञ्चथिमिल्लाओ वा चरमंताओ पुरथिमिल्लं चरमंतं एगसमएणं गच्छई' पश्चिमाद् वा चरमान्तात् पूर्व चरमान्तम् गौतमस्वामी-प्रश्न करते हैं-हे भगवान् ! नोभवोपपातगति किसे कहते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! नोभवोपपातगति दो प्रकार की कही है। कर्म के उदय से होने वाली नारकत्व आदि पर्यायों से रहित, भव से जो भिन्न हो उसे नोभव कहते हैं। पुद्गल और सिद्ध भव से भिन्न हैं, क्योंकि यही दोनों कर्मजनित पर्यायों से रहित हैं। उस नोभव में उपपात रूप गति को नोभवोपपातगति कहा गया है । इसीका स्पष्टीकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-नोभवोपपात. गति के दो भेद ये हैं-पुद्गलनोभवोपपातगति और सिद्धनोभवोपपातगति । गौतमस्वामी-हे भगवान् ! पुद्गलनोभवोपपातगति किसे कहते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! पुद्गलपरमाणु लोक के पूर्वी चरमान्त अर्थात् छोर (अन्त) से पश्चिमी चरमान्त तक एक समय में चला जाता है, इसी प्रकार पश्चिमी चरमान्त से पूर्वी चरमान्त तक एक ही समय में पहुंच जाता है, दक्षिणी શ્રી ગૌતમસ્વામી–હે ભગવન્! ને ભોપાત ગતિ કેને કહે છે? શ્રી ભગવાનને ભપાત ગતિ બે પ્રકારની કહી છે. કર્મના ઉદયથી થનારી નારકન્ય આદિ પયીથી રહિત ભવથી જે ભિન્ન હોય તેને ને ભવ કહે છે. એ પુદ્ગલ અને સિદ્ધ ભવથી ભિન્ન છે, કેમ કે આજ અને કર્મ જનિત પર્યાથી રહિત છે. તેને ભવમાં ઉપપાત રૂ૫ ગતિને ને ભપાત ગતિ કહે છે. એનું જ સ્પષ્ટીકરણ કરતાં સૂત્રકાર કહે છે ને ભપાત ગતિના બે ભેદ આ છે-પુદ્ગલભોપાત ગતિ અને સિદ્ધને ભયપાતગતિ. શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્! પુદ્ગલને પાત કોને કહે છે? શ્રી ભગવાન-હે ગૌતમ ! પુદ્ગલ પરમાણુ લેકના પૂવી ચરમાન્ડ અર્થાત અન્તથી श्री. प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy