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________________ प्रमेयबोधिनो टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरुपणम् प्राप्य तद्रूपतया यावत् परिणमति, सा एषा लेश्यागतिः ११, तत् का सा लेश्यानुपातगतिः? लेश्यानुपातगति थेल्लेश्यानि द्रव्याणि पर्यादाय कालं करोति तल्लेश्येषु उपपद्यते तद्यथाकृष्णलेश्येषु वा यावत् शुक्ललेश्येषु, सा एषा लेश्यानुपातगतिः १२, तत् का सा उद्दिश्य प्रविभक्तगतिः ? उदिश्य प्रविभक्तगति यत् खलु आचार्य वा उपाध्यायं वा स्थविरं वा प्रवक्तारं वा गणि का गणधरं वा गणावच्छेदं या उद्दिश्य उदिश्य गच्छति सा एषा उद्दिश्य प्रविभक्त तेउलेस्स) इसी प्रकार कापोतलेश्या भी तेजो लेश्या को (तेउलेस्सा बि पम्हलेस्स) तेजो लेश्या भी पद्मलेश्या को (पम्हलेस्सावि सुक्कलेस्सं पप्प) पद्मलेल्या भी शुक्ल लेश्या को प्राप्त हो कर (ता रूवत्ताए जाव परिणमति) उसी के वर्ण रूप में परिणत होती है (से तं लेस्सागतो) वह लेश्यागति है (से किं तं लेसाणुचायगती २ ?) लेझ्यानुपातगति क्या है ? (जल्लेसाई दवाई परियाइत्ता) जिस लेश्याके द्रव्यों को ग्रहण करके (कालं करेइ) काल करता हैमरता है (तल्लेस्सेसु उववज्जइ) उसी लेश्या वालों में जन्म लेता है (तं जहा किण्ह लेस्सेसु वा जाव सुक्कलेस्सेसु वा) वह इस प्रकार कृष्णलेश्याघालों में यावत् शुक्ललेश्यावालों में (से तं लेस्साणुचायगती) वह लेश्यानुपातगति हैं। ___ (से किं तं उदिस्सपविभत्तगती २ १) उद्दिश्यप्रधिभक्तगति किसे कहते हैं ? (जं णं आयरियं वा) जो कि आचार्य) को (उयज्झायं वा ) अथवा उपाध्याय से (थेरं वा) अथवा स्थविर को (पत्तिं वा) अथवा प्रवर्तक को (गणिं या) अथवा गणी को (गणदरं वा) अथवा गणधर को (गणायच्छेदं वा) अथया गणाचच्छेदक को (उद्दिस्स उद्दिस्स) उद्देश्य कर-करके (गच्छइ) गमन करता है। (से तं लेस्सा वि तेउलेस्स) मे ४२ अपात वश्या ५ तले देश्यान (तेउलेस्सा वि पम्हलेस) तेले दोश्या ५४ पदमलेश्याने (पम्हलेस्सा वि सुवकलेसं पप्प) ५४म सश्या ५९ शुस सश्याने प्रास न (ता रूवत्ताए जाव परिणमति) तेन ४ ५ ३५मा परिणत थाय छ (सेतं लेस्सा गती) ते वेश्या गति छ (से कि तं लेस्साणुवायगती ?) वयानुपातति शुछ १ (जल्लेस्साई दवाई पस्यिाइत्ता) २ वेश्या द्र०य अडएर ७२१२ (कालं करेइ) ॥ ७३ छे-भरे छ(तल्लेस्सेसु उवव. ज्जइ) तेग वेश्यामi Gu-1 थाय छ (तं जहा किण्हलेस्सेसु, जाव सुक्कलेरसेसु वा) ते । ३-४ वेश्यावाणायामां यावत् शु सेश्यावाणायाम (से तं लेस्सानुवायगती) ते લેશ્યાનુપાત ગતિ છે (से किं तं उदिस पविभत्तगती ? २) ६ि५ प्रविमत गति शेने हे छ१ (जं गं आयरियं वा) ने मायायन (उवज्झायं वा) अथ ध्यायने (थेरं वा) 24241 स्या वि२२ (पवत्तिं वा) २५॥ प्रपतने (गणिं वा) न (गणहरं वा) m4 - धरने (गणावच्छेदं वा) अथवा १२छेने (उद्दिस उद्दिस) उद्देश्य 31 अशर (गच्छई) अमन ४२ छ (से तं उरिसपविभत्तगती) ते ६श्य पविक्षत गति छ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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