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प्रज्ञापनासत्रे वा पनच्छायां वा रथच्छायां वा छत्रच्छायां वा उपसंपद्य गच्छति सा एषा छायागतिः ९, तान का सा छायानुपातगतिः ? छायानुपातगति यत् खलु पुरुषं छाया अनुगच्छति नो पुरुषश्छायामनुगच्छति सा एषा छायानुपातगतिः१०, तत् का सा लेश्यागतिः ? लेश्यागति यत् खलु कष्णलेश्या नीललेश्यां प्राप्य तद्रूपतया तवर्णतया तद्न्यतया तसतया तत्स्पर्शतया भूयो
यः परिणमति, एवं नीललेश्या कापोतलेश्यां प्राप्य तद्रपतया यावत् ततस्पर्शतया परिणमति, एचं कापोतलेश्यापि ते नोलेश्यां तेजोलेश्यापि पद्मलेश्यां पद्मलेश्यापि शुक्लले श्या वृषभ की छाया को (रहछायं वा) या रथको छाया को (छत्तछायं वा) अथवा छव की छाया को (उपसंपज्जित्ताणं) आश्रय करके (गच्छति) गमन होता है ? (से तं छायागती) यह छायागति है।
(से किं तं छायाणुवायगती ?) छायानुपातगति किसे कहते हैं (जे णं पुरिसं छाया अणुगच्छइ) छाया पुरुष का जो पीछा करती है (नो पुरिसे छायं अणुगच्छइ) पुरुष छाया का अनुगमन नहीं करता (से तं छायाणुवायगती) वह छायानुपातगति है।
(से कि तं लेस्सागती ? २) लेश्यागति किसे कहते हैं ? (जं णं किण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प) कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त होकर (ता वण्णत्ताए) उसी के वर्ण रूप में (ता गंधत्ताए) उसी की गंध रूप में (ता रसत्ताए) उसी के रस रूप में (ता फासत्ताए) उसी के स्पर्श रूप में (भुज्जो मुज्जो) वार-वार (परिणमइ) परि. पत होती है (एवं नीललेस्सा वि काउलेसं) इसी प्रकार नीललेश्या कापोतलेश्या को (पप्प) प्राप्त होकर (ता रूचत्ताए) उसी के वर्ण रूप में (जाय ता फासत्ताए) यावत् उसीके स्पर्शरूप में (परिणमति) परिणत होती है (एवं काउलेस्सा वि अथवा अपनीछायाने (उसहछायं वा) वृषभनी छायान (रहछायं वा) अथवा २थनी छायाने (छत्तछायं वा) १२॥ छनी छाया (उच संपज्जित्ताणं) साश्रय ४शन (गच्छति) अमन थाय छ (से तं छाया गती) ते छाया गती छ
(से कि तं छयाणुवायगती १) छायानुपात तिने ४ छ ? (जे णं पुरिसं छायाअणुगच्छइ) छाया ५३पना रे पीछ। ५४३ छ (नो पुरिसे छायं अणुगच्छइ) ५३५ छायानु मनुसमन नथी ४२त। (से तं छायाणुवाय गती) ते छायानुपात ति छ ।
(से किते लेस्सागती ? २) वेश्या गति शेर ४ छ ? (जं णं किण्हलेस्सा नीललेसं पप्प) वश्या नीर वेश्याने प्रास न (ता वण्णत्ताए) तन पशु ३५भी (ता गंध त्ताए) तेना ३५मा (ता रसत्ताए) तेना २५ ३५मा (ता फासत्ताए) तेना २५ ३५मां (भुज्जो भुज्जो) पार पा२ (परिणमइ) परिणत थाय छ (एवं नीललेस्सा वि काउलेस्स) म १२ नाम लेश्या पोत सश्यान (पप्प) पास धन (ता रूवत्ताए) तेना ३५मां (जाय ता फासत्ताए) यापत् तेन ॥ २५॥ ३५मां (परिणमति) परिणत थाय छ (एवं काउ
श्री प्रशान। सूत्र : 3