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________________ प्रबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् ९०५ धरपर्वते सपक्षं प्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे हेमवहिरण्यवर्षे सपक्षं सप्रति दिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे शब्दापाति विकटपाति वृत्तवेताढये सपक्षं सप्रति दिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे महाहिम कद्रूप्य वर्षधरपर्वत सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे हरिवर्षरम्यकवर्षे सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपातगतिः, जम्बूद्वीपे द्वीपे गन्धवद् माल्यवत् पर्वता वृतवैताढचे सपक्षं सप्रतिदिक् सिद्धिक्षेत्रोपपात(सिद्ध खेत्तोववायगती) सिद्धक्षेत्रोपपातगति होती है (जंबुद्दी वे दीवे) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में (चुल्लहिमवंत सिहरिया सहर पन्वतसपक्खं सपडिदिसिं) क्षुद्रहिमवान् और शिखरी वर्षधर पर्वत से सब दिशाओं - विदिशाओं में (सिद्धखेत्तोववायगती) सिद्ध क्षेत्रोपपातगति है ( जम्बुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में (मवत रणवाससपक्खं सर्पाडिदिसिं ) हैमवत - हैरण्यवर्ष के सब दिशाविदिशाओं (सिद्ध खेत्तोववायगती) सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जम्बुद्दी वे दीवे) जम्बूद्वीप नामकद्वीप में (सदायवियडावइवहवेयइडसपक्खं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोवायगती) शब्दापाती ( शकटापाती) और विकटापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत के सब दिशा - विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति हैं (जंबुद्दीवे दीये महाहिमवंत रुपिवासहरपव्वत सपक्खं सपडिदिसिं सिद्धक्खेत्तोववायगती) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में महाहिमवन्त और रुक्मि नामक वर्षधर पर्वतों के सब दिशा - विदिशाओं में सिद्धक्षेत्रोपपातगति है (जंबुद्दीवे दीवे हरिवासरम्मगवास सपक्लि सपडिदिसिं सिद्धखेतोववायगती) जम्बूद्वीप नामक द्वीप में हरिवर्ष एवं रम्यकवर्ष के सब दिशा - विदिशाओं में सिद्ध क्षेत्रोपपानगति है (जंबुद्दीवे दीवे गंधापातिमालवंत पच्चयवट्टवेयडूढसपक्खं सपडिदिसं सिद्धखेतोववयगती) जम्बूहिशायामां (सपडिदिसिं) अधी विद्विशासभां (सिद्धखेत्तोवत्रायगती) सिद्ध क्षेत्रोपयात गति होय छे (जंबुद्दीवे दीवे) स्मुद्वीप नाम द्वीपमा (चुल्ल हिमवंत सिहरि वासहर पव्वतसपक्खं सपडिदिसिं) क्षुद्र हिभवान् भने शिमरी, वर्षधर, पर्वतथी अधी दिशाओ । विधिशाोभां (सिद्ध खेत्तोववायगती) सिद्ध क्षेत्रोपयातंगति छे (जंबुद्दीवे दीवे) ०४भ्युद्वीप नाम द्वीपमा (हेमवयहेरण्णवास सप सपडिदिसिं ) हैमर हैरएयवर्षनी मधी दिशाओ भने विद्दिशायामां (सिद्धखेत्तोववायगती सिद्धक्षेत्रोपयतगति छे. (जंबुद्दीवे दीवे) मंजूदीय नामना द्वीपमा (सद्दावर वियडावइवट्टवेयड्ढसपक्खं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) શબ્દાપાતી (શકટાપાતી) અને વિકટાપાતી વૃત્ત વૈતાઢય પર્યંતની બધી દિશા–વિદિશાએમાં सिद्धक्षेत्रोपयातगति छे (जंम्बुद्दीवे दीवे महाहिमवंत रूपवा सहर पन्त्रत सपक्खं सपडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) ४ग्मुद्वीय नाम द्वीपमा महाहिभवन्त भने इडिय नाम वर्षधर पर्वतानी कधी हिशा - विदिशाभां सिद्धक्षेत्रोपयातगति छे (जम्बूद्दीवे दीवे हरिवास रम्मग वासपक्खि पडिदिसिं सिद्धखेत्तोववायगती) बभ्युदीय नामक द्वीपमा हरिवर्ष तेमन रम्य पर्षनी अधी द्विशः-विद्दिशायामां सिद्धक्षेत्रोपपातगति छे (जंबुद्दीचे दीवे गंधापाति माल - प्र० ११४ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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